दुर्गा सप्तशती पाठ का फल दुर्गा सप्तशती व् चंडीपाठ का पाठ करना सदैव ही शुभ फलदायी रहता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में नियमित रुप से दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती पाठ का फल दुर्गा सप्तशती व् चंडीपाठ का पाठ करना सदैव ही शुभ फलदायी रहता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में नियमित रुप से दुर्गा सप्तशती
जिस प्रकार शस्त्र के उपयोग हेतु अनुज्ञापत्र (license) लेना आवश्यक होता है और अनुज्ञापत्र (license) भी उसी व्यक्ति को प्राप्त होता है जो व्यक्ति उस शस्त्र के द्वारा आमजन को
इस पाठ का फल अतिशीघ्र फलदायी होता हैं रोग,क्लेश,ग्रह पीड़ा,बाधा,शत्रु,दुख आदि निवारण में यह सहायक हैं धन,धान्य,ऐश्वर्य,सुख,यश,कीर्ति,सम्मान,पद प्रतिष्ठा,आरोग्य,पुष्टि प्राप्ति हेतु करे इसका पाठ करें। श्रीगणेशाय नमः विनियोग अस्य श्री इन्द्राक्षीस्तोत्रमहामन्त्रस्य,शचीपुरन्दर
रावण एक विद्वान पंडित होने के साथ ही विद्वान तांत्रिक और ज्योतिषी भी था। माना जाता है कि सौरमंडल के सभी ग्रह रावण के ही इशारे पर चलते थे। कोई
वीरभद्र साधना वीरभद्र, भगवान शिव के परम आज्ञाकारी हैं. उनका रूप भयंकर है, देखने में वे प्रलयाग्नि के समान, हजार भुजाओं से युक्त और मेघ के समान श्यामवर्ण हैं. सूर्य
64 योगिनियों की साधना सोमवार या अमावस्या या पूर्णिमा की रात्रि से आरंभ की जाती है। साधना आरंभ करने से पहले स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर अपने पितृगण, इष्टदेव तथा
मंत्र सिद्ध करने के बाद हवन अत्यंत ही महत्वपूर्ण क्रिया मानी जाती है। हवन का अर्थ होता है कि, अग्नि के द्वारा किसी भी पदार्थ की आहुति प्रदान करना अथवा
श्री गणेशाय नमः ॐ अस्य श्रीकुञ्जिकास्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम्, मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । शिव उवाच श्रुणु
सिद्धिचण्डी महाविद्या सहस्राक्षर मन्त्र वन्दे परागम-विद्यां, सिद्धि-चण्डीं सङ्गिताम् । महा-सप्तशती-मन्त्र-स्वरुपां सर्व-सिद्धिदाम् ।। विनियोगः ॐ अस्य सर्व-विज्ञान-महा-राज्ञी-सप्तशती रहस्याति-रहस्य-मयी-परा-शक्ति श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डिका-सहस्राक्षरी-महा-विद्या-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्दांसि, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवता, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः