दुर्गा सप्तशती पाठ का फल
दुर्गा सप्तशती व् चंडीपाठ का पाठ करना सदैव ही शुभ फलदायी रहता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में नियमित रुप से दुर्गा सप्तशती का पाठ करना बहुत ही लाभकारी रहता है। दुर्गा सप्तशती के पाठ से घर में नकात्मकता प्रवेश नहीं होता है और आपके जीवन में खुशहाली आती है। मां आदिशक्ति प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करती हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ अनिष्ट का नाश एवं सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। मां दुर्गा की आराधना के लिए विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। दुर्गा सप्तशती एक ऐसा वरदान है, जो भी प्राणी इसे ग्रहण कर लेता है वह धन्य हो जाता है। जैसे मछली का जीवन पानी में होता है, जैसे एक वृक्ष का जीवन उसके बीज में होता है, वैसे ही माँ के भक्तों के लिए उनका जीवन, उनके प्राण, दुर्गा सप्तशती में स्थित होते है। इसके हर अध्याय का एक विशेष और भिन्न उद्देश्य बताया गया है, और ये देवी के विभिन्न शक्तियां को जागृत करने के 13 ब्रह्मास्त्र कह सकते है।
दुर्गा सप्तशती पाठ के करने की विधि यह है कि इसे तीन भागों में पढ़ा जाता है। पहला प्रथम चरित्र (प्रथम अध्याय), दूसरा मध्यम चरित्र (अध्याय 3, 4,5), तीसरा उत्तर चरित्र (अध्याय 6,7,8,9,10,11,12,13) है। अतः यह पाठ थोड़ा लम्बा जरूर है किंतु इसे विधिपूर्वक पढ़ने से सम्पूर्ण सप्तशती के पाठ का लाभ आप प्राप्त करेंगे। इसीलिए धैर्यपूर्वक, मन लगाकर माँ महिषासुर मर्दिनी का ध्यान करें, इसका अनन्त पुण्यलाभ है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 1
यदि साधक को किसी भी प्रकार की चिंता है, किसी भी प्रकार का मानसिक विकार अर्थात मानसिक कष्ट है तो दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय के पाठ से इन सभी मानसिक विचारों और दुष्चिंताओं से मुक्ति मिलती है। मनुष्य की चेतना जागृत होती है और विचारों को सही दिशा मिलती है। किसी भी प्रकार के नकारात्मक विचार आप पर हावी नहीं होते हैं। इस प्र्कारदुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय से आपको हर प्रकार की मानसिक चिंताओं से मुक्ति मिलती है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 2
दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय के पाठ से मुकदमे में विजय मिलती है। किसी भी प्रकार का आपका झगड़ा हो, वाद विवाद हो, उसमें शांति आती है, और आपके मान-सम्मान की रक्षा होती है। दूसरा पाठ विजय के लिए होता है किंतु आपका उद्देश्य आपकी मंशा सही होनी चाहिए तभी ये पाठ फल देता है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 3
तीसरे अध्याय का पाठ शत्रुओं से छुटकारा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। शत्रुओं का भय व्यक्ति के जीवन में बहुत पीड़ा का कारण होता है क्योंकि भय ग्रस्त व्यक्ति चाहे वो कितनी भी सुख-सुविधा में रह रहा हो, कभी भी सुखी नहीं रह सकता । अतः इस अध्याय के पाठ करने से आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के भय नष्ट हो जाते हैं। यदि आपके गुप्त शत्रु हैं जिनका पता नहीं चलता और जो सबसे ज्यादा हानि पहुंचा सकते हैं तो ऐसे शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए तीसरे अध्याय का पाठ करना सर्वोत्तम होता है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 4
दुर्गा सप्तशती का चौथा अध्याय माँ भगवती की भक्ति प्राप्त करने के लिए उनकी शक्ति, उनकी ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए और उनके दर्शनों के लिए सर्वोत्तम है। वैसे तो इस ग्रंथ के प्रत्येक अध्याय के प्रत्येक शब्द में माता की ऊर्जा निहित है किंतु फिर भी की निष्काम भक्ति का अनुभव करने के लिए और दर्शनों के लिए यह अध्याय सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 5
पांचवे अध्याय के प्रभाव से हर प्रकार के भय का नाश होता है। चाहे वो भूत-प्रेत की बाधा हो, बुरे स्वप्न परेशान करते हो, या व्यक्ति हर जगह से परेशान हो, तो पांचवें अध्याय के पाठ से इन सभी चीजों से मुक्ति मिलती है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 6
इस अध्याय का पाठ किसी भी प्रकार की तंत्र बाधा को हटाने के लिए किया जाता है । इसके अतिरिक्त यदि आपको लगता है कि आपके ऊपर जादू-टोना किया गया हो, आपके परिवार को बांध दिया हो, या राहु और केतु से आप पीड़ित हो तो छठवें अध्याय का पाठ इन सभी कष्टों से आपको मुक्ति दिलाता है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 7
किसी भी विशेष कामना की पूर्ति के लिए सातवाँ अध्याय सर्वोत्तम है। सच्चे और निर्मल ह्र्दय से देवी की पूजा की जाती है और सातवें अध्याय का पाठ किया जाता है तो व्यक्ति की कामना पूर्ति अवश्य होती हैं।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 8
यदि आपका कोई प्रिय आपसे बिछड़ गया है और आप उसे ढूँढकर थक चुके हैं तो आठवें अध्याय का पाठ चमत्कारिक फल प्रदान करता है। इसके अलावा वशीकरण के लिए भी इस अध्याय का पाठ किया जाता है, लेकिन वशीकरण सही व्यक्ति, सही मंशा के साथ किया जा रहा हो, इसका ध्यान रखना बहुत आवश्यक है, नहीं तो लाभ के स्थान पर हानि भी हो सकती है। इसके अलावा धन लाभ के लिए धन प्राप्ति के लिए भी आठवें अध्याय का पाठ बेहद शुभ माना जाता है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 9
नौवा अध्याय का पाठ संतान प्राप्ती के लिए किया जाता है। पुत्र प्राप्ति के लिए या संतान से संबंधित किसी भी परेशानी के निवारण के लिए दुर्गा सप्तशती के नवम अध्याय का पाठ किया जाता है। इसके अलावा संतान की उन्नति,प्रगति के लिए तथा किसी भी प्रकार की खोई हुई अमूल्य वस्तु की प्राप्ति के लिए भी नौवें अध्याय का पाठ करना उत्तम होता है। यह आपकी मनोकामना पूर्ण करने में सहायक है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 10
यदि संतान गलत रास्ते पर जा रही है तो ऐसी भटकी हुई संतान को सही रास्ते पर लाने के लिए दसवां अध्याय सर्वश्रेष्ठ है। अच्छे और योग्य पुत्र की कामना के साथ दसवें अध्याय का पाठ किया जाए, तो योग्य संतान की प्राप्ति होती हैं और प्राप्त संतान सही रास्ते पर चलती है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 11
आपके व्यापार में हानि हो रही है ,पैसों का जाना रुक नहीं रहा है, किसी भी प्रकार से धन की हानि आपको हो रही हो, तो इस अध्याय का पाठ करना चाहिए। इसके प्रभाव से आपके अनावश्यक खर्चे बंद हो जाते हैं और घर में सुख शांति का वास रहता है।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 12
इस अध्याय का पाठ करने से व्यक्ति को मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जिस व्यक्ति पर गलत दोषारोपण कर दिया जाता है, जिससे उसके सम्मान की हानि होती है तो ऐसी स्थिती से बचने के लिए दुर्गा सप्तशती के बारहवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। रोगों से मुक्ति के लिए भी इस अध्याय का पाठ करना असीम लाभकारी है। कोई भी ऐसा रोग जिससे आप वर्षों से दुखी हैं और डॉक्टर की दवाइयों का कोई असर नहीं हो रहा है तो इस अध्याय का पाठ आपको अवश्य करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती अध्याय 13
तेहरवें अध्याय का पाठ माँ भगवती की भक्ति प्रदान करता है। किसी भी साधना के बाद माँ की पूर्ण भक्ति के लिए इस अध्याय का पाठ अति महत्वपूर्ण है। किसी विशेष मनोकामना को पूर्ण करने के लिए, किसी भी इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए इस अध्याय का पाठ अत्यंत प्रभावी माना गया है।
दुर्गा सप्तशती पाठ की जो विधि प्रचलित है वह निम्नलिखित क्रम में है।
1- शापोद्धार,उत्कीलन,मृतसंजीवनी विद्या,सप्तशती शापविमोचन ( इनके मन्त्रों का जप आरम्भ में ही होता है।)
2- देवीकवचं का पाठ
3- अर्गलास्तोत्र का पाठ
4- कीलक स्तोत्र का पाठ
5- रात्रिसूक्त का पाठ
6- नवार्णमन्त्रन्यासजप
7- सप्तशती न्यास
8- सप्तशती के तेरह अध्यायों का पाठ
9- उत्तरन्यास में सप्तशती न्यास
10- नवार्णमन्त्रन्यासजप
11- शापोद्धार, उत्कीलन, मृतसंजीवनी ( सप्तशतीशाप विमोचन नहीं)
12- देवीसूक्त का पाठ
13- रहस्यत्रय
14- क्षमाप्रार्थना
ये चौदह महत्त्वपूर्ण क्रम हैं। इनमें से किसी को छोड़ा नहीं जा सकता।
दुर्गा सप्तशती पाठ संस्कृत मे ही करें
दुर्गा सप्तशती पाठ सम्पूर्ण (with effect):
दुर्गा सप्तशती पाठ उत्तर चरित्र (non stop):
Reciting Durga Saptashati and Chandipath is always auspicious, especially during Navratri, reciting Durga Saptashati regularly is very beneficial. With the recitation of Durga Saptashati, negativity does not enter the house and happiness comes in your life. Maa Adishakti is pleased and fulfills all the wishes. Durga Saptashati is recited for the destruction of evil and for getting happiness and prosperity. Durga Saptashati is specially recited to worship Maa Durga. Durga Saptashati is such a boon, whosoever receives it becomes blessed. As the life of a fish is in water, as the life of a tree is in its seed, so for the devotees of the Mother, their life, their life, is situated in Durga Saptashati. Each of its chapters has a specific and different purpose, and it can be called 13 Brahmastras to awaken the various powers of the Goddess. The method of doing Durga Saptashati text is that it is read in three parts. The first is the pratham charitra (Chapter I), the second is the madhyam charitra (Chapter 3, 4,5), the third is the Uttar charitra (Chapter 6,7,8,9,10,11,12,13). Therefore, this text is a bit long, but by reading it methodically, you will get the benefit of the entire Saptashati lesson. That is why meditate on Maa Mahishasur Mardini patiently, diligently, it has infinite benefits.
[ RAVIKANT UPADHYAY ] [ PROFILE ] [ DISCLAIMER ] GANJBASODA | VIDISHA | MP | INDIA |
Keywords: chandipath, durga, mantra, powerful, saptashatii,