इन्द्राक्षी स्तोत्र


इस पाठ का फल अतिशीघ्र फलदायी होता हैं रोग,क्लेश,ग्रह पीड़ा,बाधा,शत्रु,दुख आदि निवारण में यह सहायक हैं धन,धान्य,ऐश्वर्य,सुख,यश,कीर्ति,सम्मान,पद प्रतिष्ठा,आरोग्य,पुष्टि प्राप्ति हेतु करे इसका पाठ करें। श्रीगणेशाय नमः विनियोग अस्य श्री इन्द्राक्षीस्तोत्रमहामन्त्रस्य,शचीपुरन्दर



श्री काली जगन्मंगल कवच


भैरव्युवाच काली पूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधाः प्रभो । इदानीं श्रोतु मिच्छामि कवचं पूर्व सूचितम् ॥ त्वमेव शरणं नाथ त्राहि माम् दुःख संकटात् । सर्व दुःख प्रशमनं सर्व पाप प्रणाशनम्



श्री बगला दिग्बंधन रक्षा स्तोत्रम्


ब्रह्मास्त्र प्रवक्ष्यामि बगलां नारदसेविताम् । देवगन्धर्वयक्षादि सेवितपादपंकजाम् ।। त्रैलोक्य-स्तम्भिनी विद्या सर्व-शत्रु-वशंकरी आकर्षणकरी उच्चाटनकरी विद्वेषणकरी जारणकरी मारणकरी जृम्भणकरी स्तम्भनकरी ब्रह्मास्त्रेण सर्व-वश्यं कुरु कुरु ॐ ह्लां बगलामुखि हुं फट् स्वाहा । ॐ



ब्रह्मास्त्र महाविद्या श्रीबगला स्तोत्र


प्राचीन ऋषि-मुनियों ने देवी भद्रकाली, दक्षिणकाली या महाकाली की घनघोर तपस्या कर जातकों में विभिन्न समस्याओं से मुक्ति दिलाकर कीर्ति की पताका लहराई थी। देवी की साधना, आराधना व जप



अपराजिता देवी दुर्गा स्तोत्र, शत्रु मारण


अपराजिता श्री दुर्गादेवीका मारक रूप है । अपराजिता देवी का पूजन पूजास्थलपर अष्टदलकी आकृति बनाते हैं । इस अष्टदलका मध्यबिंदु `भूगर्भबिंदु’ अर्थात देवीके `अपराजिता’ रूपकी उत्पत्तिबिंदु का प्रतीक है, तथा

 

शिव ताण्डव स्तोत्र


 शिवताण्डवस्तोत्रम् जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् । डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥ जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्धगज्जलल्ललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥ धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे । कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु



सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र


  श्री गणेशाय नमः ॐ अस्य श्रीकुञ्जिकास्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम्, मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । शिव उवाच श्रुणु



पाशुपतास्त्र स्तोत्र


ॐ नमो भगवते महापाशुपतायातुलबलवीर्यपराक्रमाय त्रिपन्चनयनाय नानारुपाय नानाप्रहरणोद्यताय सर्वांगडरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशान वेतालप्रियाय सर्वविघ्ननिकृन्तन रताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकम्पिने असंख्यवक्त्रभुजपादाय तस्मिन् सिद्धाय वेतालवित्रासिने शाकिनीक्षोभ जनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभन्जनाय सूर्यसोमाग्नित्राय विष्णु कवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदण्डवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलज्जिह्राय

whatsapp