श्री कलिकाष्टकम् ध्यान गलद्रक्त मुंडावली कंठमाला , महाघोररावा सुन्दष्ट्रा कराला | विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी , महाकालकामाकुला कालिकेयम् || भुजे वामयुग्मे शिरोसि दधाना, वरं दक्षयुग्मेभयं वै तथैव | सुमध्यापि तुन्ग्स्तना भारनम्रा,
श्री कलिकाष्टकम् ध्यान गलद्रक्त मुंडावली कंठमाला , महाघोररावा सुन्दष्ट्रा कराला | विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी , महाकालकामाकुला कालिकेयम् || भुजे वामयुग्मे शिरोसि दधाना, वरं दक्षयुग्मेभयं वै तथैव | सुमध्यापि तुन्ग्स्तना भारनम्रा,
अपराजिता श्री दुर्गादेवीका मारक रूप है । अपराजिता देवी का पूजन पूजास्थलपर अष्टदलकी आकृति बनाते हैं । इस अष्टदलका मध्यबिंदु `भूगर्भबिंदु’ अर्थात देवीके `अपराजिता’ रूपकी उत्पत्तिबिंदु का प्रतीक है, तथा
सिद्धिचण्डी महाविद्या सहस्राक्षर मन्त्र वन्दे परागम-विद्यां, सिद्धि-चण्डीं सङ्गिताम् । महा-सप्तशती-मन्त्र-स्वरुपां सर्व-सिद्धिदाम् ।। विनियोगः ॐ अस्य सर्व-विज्ञान-महा-राज्ञी-सप्तशती रहस्याति-रहस्य-मयी-परा-शक्ति श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डिका-सहस्राक्षरी-महा-विद्या-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्दांसि, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवता, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः