गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ ऋषिकेश उत्तराखंड रमाकांत उपाध्याय / 9893909059
ऋषिकेश के विद्वान पंडित देव उपाध्याय से जानिए करवीर व्रत (सूर्य और कनेर वृक्ष पूजन) विधि- विधान व महत्व
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भारतीय रीतिरिवाज अनुसार करवीर व्रत भगवान सूर्य और कनेर वृक्ष की पूजा उपासना के रूप में मनाया जाने वाला पर्व है। हिन्दु धर्म में सूर्य पंच देवों में एक है। वह साक्षात देव माने जाते हैं। जिनकी अपार शक्ति, गति और ऊर्जा से संसार का हर प्राणी और वनस्पति जीवन शक्ति पाते हैं। वह काल के निर्धारक भी है। धार्मिक मान्यताओं में भी सूर्य को समस्त इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करने वाला बताया गया है।
हिन्दु पंचांग के अनुसार करवीर व्रत को काफी महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। व्रत शुक्ल पक्ष के पहले दिन या ज्येष्ठ माह (मई – जून) के समय मनाया जाता है अर्थात उत्तर भारत के पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार।
व्रत महात्म्य
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इस व्रत में सूर्य की आराधना का विधान है। पवित्र स्थान में जाकर कनेर वृक्ष का पूजन करें व् व्रत रखे तो संकट से छुटकारा मिलता है। यह व्रत स्त्रियों को तत्काल फल देने वाला है। पुराने समय में सावित्री, सत्यभामा और दमयंती आदि जैसी सती स्त्रियों ने इस व्रत को किया था।
करवीर व्रत पौराणिक कथा
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‘करवीर क्षेत्र महात्म्य’ तथा ‘लक्ष्मी विजय’ के अनुसार कौलासुर दैत्य को वरदान प्राप्त था कि वह स्त्री द्वारा ही मारा जा सकेगा, अतः विष्णु स्वयं महालक्ष्मी रूप में प्रकट हुए और सिंहारूढ़ होकर करवीर में ही उसको युद्ध में परास्त कर संहार कर दिया। मरने से पहले उसने देवी से वर याचना की कि उस क्षेत्र को उसका नाम मिले। देवी ने वर दे दिया और वहीं स्वयं भी वहीँ स्थित हो गईं, तब इसे ‘करवीर क्षेत्र’ कहा जाने लगा, जो वर्तमान में ‘कोल्हापुर’ हो गया है। माँ को कोलासुरा मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण के अनुसार यह क्षेत्र 108 कल्प प्राचीन है एवं इसे महामातृका कहा गया है, क्योंकि यह आदिशक्ति का मुख्य स्थल है।
करवीर व्रत पूजा विधि
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करवीर व्रत में सूर्योपासना विधि
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महातेज, मार्तण्ड, मनोहर, महारोगहर।
जयति सूर्यनारायण, जय जय सर्व सुखाकर।। (पद-रत्नाकर)
उदयकालीन सूर्य ब्रह्मारूप में होते हैं, दोपहर में सूर्य विष्णुरूप में और संध्या के समय वे संसार का अंत करने वाले रूद्ररूप में होते हैं। संसार के अन्धकार को दूर करने व मनुष्य को कर्म करने को प्रेरित करने के लिए साक्षात् नारायणरूप भगवान सूर्य प्रतिदिन प्रात:काल इस भूमण्डल पर उदित होते हैं। अत: सूर्य पर्व के विशेष दिन उनके स्वागत के लिए मनुष्य को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र पहन कर तैयार हो जाना चाहिए। शास्त्रों में सूर्यपूजा सूर्योदय के समय की श्रेष्ठ बतायी गयी है, अत: सुबह जितनी जल्दी हो सके सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए अथवा सूर्योदय के समय सूर्य को नमस्कार करने से भी अत्यन्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
अर्घ्यजल तैयार करने की विधि
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एक तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें रक्तचंदन (अथवा चंदन), कुंकुम, चावल, करवीर (कनेर) या लाल पुष्प मिलाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के अनेक मन्त्र हैं, जो भी मन्त्र सुविधाजनक लगे उससे अर्घ्य दिया जा सकता है।
सूर्य को अर्घ्य देने के मन्त्र
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ॐ सूर्याय नम: या ॐ घृणि: सूर्याय नम: इन मन्त्रों से भगवान सूर्य को अर्घ्य दे सकते हैं।
भगवान सूर्य को तीन बार गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दिया जा सकता है। अथवा
‘ॐ घृणि: सूर्य आदित्योम्’ इस मन्त्र से भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अथवा
निम्न श्लोक का उच्चारण करके सूर्य को अर्घ्य दे सकते हैं
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।।
भगवान सूर्य को अर्घ्य किसी पात्र में या गमले में अर्पण करना चाहिए। अर्घ्यजल पैरों पर नहीं आना चाहिए। अर्घ्य देने के बाद उसी स्थान पर घूमकर सूर्य की परिक्रमा करनी चाहिए।
अर्घ्य देने के बाद इन बारह नामों का उच्चारण कर करें भगवान सूर्य को प्रणाम,सूर्य भगवान को उनके बारह नामों का उच्चारण कर प्रणाम करें।
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नमो नम:
सूर्य भगवान के नामो का उच्चारण करने के बाद वही आसान बिछाकर सूर्य गायत्रीमन्त्र की कम से कम तीन माला का जप करना चाहिये।
सूर्य गायत्री मंत्र
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ॐ आदित्याय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात्।
अर्थात्? हम भगवान आदित्य को जानते हैं, पूजते हैं, हम सहस्त्र किरणों वाले भगवान सूर्यनारायण का ध्यान करते हैं, वे सूर्यदेव हमें प्रेरणा प्रदान करें।
जटिल रोगों से मुक्ति के लिए सूर्य का विशेष अष्टाक्षर मन्त्र है, उसकी भी यथा सामर्थ्य माला सूर्य की ओर मुख करके जपने से भयंकर रोग दूर हो जाते हैं, एवं दरिद्रता का नाश हो जाता हैं।
ॐ घृणि: सूर्य आदित्योम्।
विभिन्न प्रकार की पूजा का फल
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शास्त्रों में विभिन्न प्रकार से सूर्यपूजा करने के भिन्न फल बताए गए हैं।
लाल वर्ण के (लाल चंदन युक्त या रोली) जल से अर्घ्य देने व कमल के पुष्प से सूर्यपूजा करने पर मनुष्य स्वर्ग के सुख प्राप्त करता है।
सूर्यदेव को गुग्गुल की धूप निवेदित करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
मन्दार पुष्पों से सूर्य पूजा करने पर मनुष्य सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है।
यदि सूर्य की आराधना के लिए पुष्प न हों तो शुभ वृक्षों के कोमल पत्तों व दूर्वा से भी सूर्यपूजा की जा सकती है। यदि यह भी न हो तो केवल सूर्य के नामों का उच्चारणकर प्रणाम ही कर लें तो भी सूर्यदेव प्रसन्न हो जाते हैं।
सूर्यभगवान का पूजन करने से धन, धान्य, संतान की वृद्धि होती है। मनुष्य निष्काम हो जाता है तथा अंत में सद्गति प्राप्त होती है। भगवान सूर्य के प्रसन्न हो जाने पर राजा, चोर, ग्रह, शत्रु आदि पीड़ा नहीं देते तथा दरिद्रता और सभी दुख दूर हो जाते हैं।
भगवान सूर्य की आराधना करने वाले मनुष्य को राग–द्वेष, झूठ और हिंसा से दूर रहना चाहिए। कलुषित हृदय और अप्रसन्न मन से मनुष्य भगवान सूर्य को सब–कुछ अर्पित कर दे तो भी भगवान आदित्य उस पर प्रसन्न नहीं होते। लेकिन यदि शुद्ध हृदय से मात्र जल अर्पण करने पर सूर्यपूजा के दुर्लभ फल की प्राप्ति हो जाती है।
(कनेर वृक्ष) पूजा विधि
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सूर्य पूजन के उपरांत किसी देवस्थान पर कनेर के पेड़ की पूजा की जाती है।
इस पूजा को नियम पूर्वक करना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले वृक्ष के पास सफाई कर जल से शुद्ध करें। अब कनेर के वृक्ष के तने पर लाल मौलि बांधें और उसको जल अर्पित करते हुए लाल वस्त्र उढ़ायें। अब गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें। किसी पात्र में सप्तधान्य अर्थात सात प्रकार के अनाज और फल आदि रखकर वृक्ष को अर्पित करें। पूजन के बाद दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र से वृक्ष की प्रार्थना करे- ‘आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न्मृतं च्। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥’ इसके बाद वृक्ष की प्रदक्षिणा करके प्रणाम करें।
एक वस्त्र पर सात तरह के अन्न और केले, नारंगी जैसे फल रखकर यह पौराणिक मंत्र बोलकर सभी पदार्थ किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दें।
करवीर विषावास नमस्ते भानुवल्लभ। मौलिमण्डन दुर्गादिदेवानां सततं प्रिय।।
पूरे दिन यथाशक्ति उपवास या एक समय आहार लेकर व्रत रखें। इस दिन पवित्र आचरण करें। आहार-विहार, वचन और कर्मों की अपवित्रता से दूर रहें। धार्मिक दृष्टि से ऐसे व्रत के पालन से व्रती को घोर संकट और आपदा से मुक्ति मिलती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं।
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