Rishikesh एकादशी को चांवल नही खाने के वैज्ञानिक व धार्मिक दृष्टिकोण – पं.देव उपाध्याय

गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ ऋषिकेश उत्तराखंड रमाकांत उपाध्याय / 9893909059

ऋषिकेश के विद्वान पंडित देव उपाध्याय जी से जानिए एकादशी को चावल खाना वर्जित क्यो…?
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एकादशी की एक घटना?
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है।

चावल खाने से परहेज क्यो?
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं। एक और पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं।

चावल का जल से सम्बन्ध
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ जहां चावल का संबंध जल से है, वहीं जल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं।

चावल न खाने की सलाह क्यो ?
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ वर्ष की चौबीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है।

चावल के लिए मिट्टी की जरूत नहीं
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूत नहीं पड़ती। केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं। इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरुप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।

ऐसे हुई चावल की उत्पति
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ शास्त्रों में एक पौराणिक कथा भी है। इसके अनुसार माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं। ऐसा माना गया है कि जिस दिन यह घटना हुई। उस दिन एकादशी का दिन था। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा के शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है।
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