Rishikesh अपरा एकादशी का धार्मिक महत्व – पं. देव उपाध्याय

गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ ऋषिकेश उत्तराखंड रमाकांत उपाध्याय / 9893909059

(ऋषिकेश के विद्वान पंडित देव उपाध्याय जी से जानिए अपरा एकादशी का धार्मिक महत्व )
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अपरा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। यह एकादशी ज्येष्ठ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को पड़ती है। अपरा एकादशी को अचला एकादशी, भद्रकाली एकादशी, जलक्रीड़ा एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

अपरा एकादशी महत्व
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इस माह अपरा एकादशी 26 मई 2022 (गुरुवार) को पड़ रही है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के व्रत को विधि पूर्वक करने से अपार धन की प्राप्ति होती है। साथ ही यह एकादशी यश प्रदान करने वाली एकादशी भी मानी जाती है।

युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से इस व्रत के माहात्म्य के बारे में विस्तार से बताने को कहा. युधिष्ठिर ने कहा कि हे प्रभु ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है तथा उसका माहात्म्य क्या है, कृपा कर कहिए?

युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण बताने लगे. हे राजन! यह एकादशी अचला और अपरा एकादशी के नाम से जानी जाती है. पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है. जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं.

अपरा एकादशी के विषय में ऐसी शास्त्रीय मान्यता है कि जो मनुष्य अपने भूतकाल और वर्तमान के पापों से डरता है उसे इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता भद्रकाली प्रकट हुईं थीं।

अपरा एकादशी के व्रत से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं मान्यता यह भी है कि इस व्रत को धारण करने से मनुष्य ब्रह्म हत्या के पाप से भी मुक्त हो जाता है।

अपरा एकादशी के दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है. अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भू‍त योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं. इस व्रत को करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं. जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं फिर उनकी निंदा करते हैं, वे अवश्य नरक में पड़ते हैं. मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं.

जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है. मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है.

यह व्रत एक ऐसी कुल्हाड़ी है जो पापरूपी वृक्ष को काट देती है. पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है. इसलिए मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।

अपरा एकादशी व्रत विधि
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साथ ही इस व्रत को धारण करने से परनिंदा जैसे कर्मों से मुक्ति मिलती है। इस व्रत में भगवान विष्णु का धूप, दीप, नेवैद्य और श्वेत पुष्पों से पूजन करना चाहिए। एकादशी की रात्रि में हरी नाम का संकीर्तन करना चाहिए।

यह व्रत सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय होने तक रखा जाता है। इस व्रत में चावल और तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन तुलसी से पत्ते न तोड़ें।

विष्णु सहस्रनाम का पाठ और श्रवण करें। इस दिन व्रत रखने से बड़े से बड़ा पापी भी मोक्ष का अधिकारी बन सकता है। इएलिए इस व्रत को विधि पूर्वक धारण करना चाहिए।

अपरा एकादशी व्रत कथा
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इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था. वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था. उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया. इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा.

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे. उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया. अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा. ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया.

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया. इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई. वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया.

आरती भगवान जगदीश्वर जी की
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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश…

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश…

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥ ॐ जय जगदीश…

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय जगदीश…

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश…

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
करुणा हाथ बढ़ाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय जगदीश…

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश…
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