गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ रमाकांत उपाध्याय/
सनातन धर्मग्रंथ वेदों में शराब आदि नशे को करने से मना किया गया है। क्योंकि इससे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। और बुद्धि भृष्ट होने से मनुष्य का पतन हो जाता है। आइए जानते हैं डॉ विवेक आर्य जी से वेदों की ऋचाएं जिनमें इन सबको निंदनीय बर्जित बताया गया है। सरकार को इन्हें सम्पूर्ण देश मे प्रतिवन्धित कर देना चाहिए।
- वेद में मनुष्य को सात मर्यादायों का पालन करना निर्देश दिया गया हैं। #ऋग्वेद 10/5/6 इनके विपरीत अमर्यादाओं में से कोई एक का भी जो सेवन करता हैं तो वह पापी हो जाता हैं। ये अमर्यादाएँ हैं #चोरी, #व्यभिचार, #ब्रह्म_हत्या, #गर्भपात , असत्य भाषण , बार बार बुरा कर्म करना और शराब पीना।
- शराबी लोग मस्त होकर आपस में नग्न होकर झगड़ा करते और अण्ड बण्ड बकते हैं इसलिए शराब आदि नशे का ग्रहण नहीं करना चाहिए। – ऋग्वेद 8/2/12
- सुरा और जुए से व्यक्ति अधर्म में प्रवृत होता हैं- ऋग्वेद 7/86/6
- मांस, शराब और जुआ ये तीनों निंदनीय और वर्जित हैं। – #अथर्ववेद 6/70/1
- #शतपथ के अनुसार सोम अमृत है तो सुरा विष है। इस पर विचार करना चाहिए। शतपथ 5/1/2
वेदों में नशे का स्पष्ट निषेध जनहित को ध्यान में रखकर किया गया हैं। महात्मा गांधी से लेकर सभी महापुरुषों ने भी इसका विरोध किया है इसके बाद में भी देश मे थोड़े से लाभ के लिए सरकार खुद नशे को बढ़ावा दे रही है।
हमारे राजतन्त्र का कर्तव्य बनता है कि वेदों की कल्याणकारी शिक्षा को सामान्य जनों के लाभार्थ लागू करे।
साभार डा. विवेक आर्य