धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाला है शिवमहापुराण- प्रमेहानन्द जी

धर्मकांटा स्थित सिद्धेश्वर महादेव मंदिर पर आयोजित 12 दिवसीय कथा महोत्सव का हुआ समापन, भंडारा

गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ गंजबासौदा रमाकांत उपाध्याय/

श्रीशिव महापुराण धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष रूपी चारों पुरुषार्थ को देने वाला है। शिव का अर्थ है कल्याण.!! शिव के महात्मय से ओत-प्रोत यह पुराण शिव महापुराण के नाम से प्रसिद्ध है। यह बात धर्मकांटा स्थित श्री सिद्धेश्वर महादेव परिसर पर आयोजित श्री शिव महापुराण महोत्सव में कथा सुनाते हुए पंडित प्रमेहानन्द जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि भगवान शिव पापों का नाश करने वाले देव हैं तथा बड़े सरल स्वभाव के हैं। इनका एक नाम भोला भी है। अपने नाम के अनुसार ही बड़े भोले-भाले एवं शीघ्र ही प्रसन्न होकर भक्तों को मनवाँछित फल देने वाले हैं।  

महाराज ने श्रद्धालुओं से कहा कि धार्मिक आयोजनों में भावनाएं होनी जरूरी है। भावनाएं भाव के रूप में धर्म में आकर कर्म के रूप में कायोर् की ओर चलती हैं। सगुण, साकार सूर्य, चंद्रमा, जल, पृथ्वी, वायु यह एक शिव पुराण का स्वरूप हैं। उन्होंने कहा कि अपने चारों ओर सदैव वातावरण शुद्ध रखें। जहां स्वच्छता और शांति होती है, वहां देवताओं का वास होता है। जल,वायु, पेड़ एक चेतन से लेकर जड़ चेतन में आकर एक-दूसरे के सहायक बनते हैं। जहां अधार्मिकता बढ़ जाती है और कर्म को भूल जाते हैं, वहां शिव और शक्ति दोनों नहीं होते।

शिव की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान शिव ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों से मुक्त कर सकते हैं, शिव की भक्ति से सुख व समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। कहा कि इस अलौकिक शिवपुराण की कथा सुनना अर्थात पाप कर्मो से विमुक्त होना है।  आयोजित शिव महापुराण में कथा को सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त पहुचे।

उन्होंने कहा कि अपने अभिमान में चूर होकर दक्ष प्रजापति ने कनखल में यज्ञ किया। इसमें सभी देवों व ऋषि मुनियों को आमंत्रित कर उन्होंने भगवान शिव की उपेक्षा की। इसकी सूचना सती को अपनी सहेलियों से मिली, इसके बाद शिव के समझाने के बाद भी वे यज्ञ में पहुंच गई। वहां देखा कि भगवान शिव का अपमान हो रहा है। पूछने पर राजा दक्ष ने सती का भी अपमान किया। नाराज सती ने यज्ञ कुंड में ही अपना शरीर त्याग दिया। यह जानकारी जब शिव को हुई,तब वे रौद्र रूप में आ गए और उन्होंने अपने गणों की मदद से कनखल को तबाह कर दिया। कथा के इस प्रसंग को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए। 

पूर्णाहुति के साथ हुआ समापन
पंडित मुन्नालाल शास्त्री ने वैदिक विधि विधान से महायज्ञ सम्पन कराया जिसमे यजमानों ने आहुतियां छोड़ी।  महोत्सव का समापन हुआ। समापन पर भंडारा भी किया गया जिसमें श्रद्धालुओ को प्रसादी खिलाई गई।

इस मौके पर मंदिर समिति के ब्रजकिशोर जी पाठक, घनश्याम तिवारी, आशुतोष पाठक, गणेशराम रघुवंशी, रामकृष्ण दुबे, मनोज शर्मा, सुवह सिंह रघुवंशी , मुख्य यजमान सुरेशचंद जोशी, सहित अनेक श्रद्धालुगण मौजूद थे।