व्यक्ति के अच्छे चरित्र का शुभारंभ बचपन से ही होता हैः डां वेदाती जी,
जो बच्चे माँ-बाप का प्यार नहीं पा सकते वो परिवार का श्रृंगार नहीं बन सकते और जो परिवार का श्रृंगार नहीं बन सकते वे राष्ट्र के कर्णधार भी नहीं बन सकते हैं।
गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ गंजबासौदा मध्यप्रदेश रमाकांत उपाध्याय/ 9893909059
जीवाजीपुर स्थित वेदांतआश्रम में समायोजित नवदिवसीय लक्ष्मीनारायण महायज्ञ एवं श्री राम कथा के सप्तम दिवस में श्री मद जगद्गुरु अनंतानंद द्वाराचार्य काशीपीठाधीश्वर स्वामी डॉ. रामकमलदास वेदांती महाराज ने श्री राम कथा के पाटन प्रसंगों का वर्णन करते हुए कहा कि व्यक्ति के अच्छे चरित्र का शुभारंभ बचपन से ही होता है। जो बच्चे माँ-बाप का प्यार नहीं पा सकते वो परिवार का श्रृंगार नहीं बन सकते और जो परिवार का श्रृंगार नहीं बन सकते वे राष्ट्र के कर्णधार भी नहीं हो सकते। राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को एक दूसरे का आदर करना सिखाया था।
इस कारण राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न के प्रेम व भाईचारे की कहानियां आज भी भाई-भाई में प्रेम बढ़ाने का सन्देश देती हैं। भरत का चरित्र हमें यह प्रेरणा देता है कि भाई भाई के बीच में भौतिक संपत्ति बाधक नहीं बननी चाहिए। श्री भरत जी ने अपने भाई राम को वनवास देने वाली अपनी सगी माँ कैकयी को बड़े ही कड़े शब्दों में फटकारा और वे अयोध्या के राजपाठ, वैभव का त्याग करके चित्रकूट अपने राम को मनाने गये।
निषाद व कोल-भील के चरित्र को प्रस्तुत करते हुए स्वामी वेदांती जी ने कहा कि जाति-पाति का भेद मिटाकर मनुष्यों से प्रेम होना चाहिए। जिस निषाद जाति को लोग अछूत मानकर अपने से दूर हटाते थे उन्हीं निषादों ने श्री राम की सेवा में प्राणों तक को न्यौछावर करने के लिए भरत से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए, किन्तु राम के प्रेम में डूबे हुए भरत ने निषाद को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और कहा कि सबके हृदय में इश्वर का निवास है। इसलिए मनुष्य केवल मनुष्य है। न कोई छोटा न कोई बड़ा श्री भरत ने तीर्थराज प्रयाग में ऋषि-मुनियों के समक्ष नतमस्तक होकर श्री राम के प्रेम को ही माँगा जो लोग भगवान से प्रेम करते हैं उन्हें हर एक वस्तु में समान रूप से ईश्वर दिखाई पड़ता है। इसलिए वे और बुराइयों को त्यागकर परस्पर भाईचारे का विस्तार करते हैं।
हमारे देश भारत में भगवान ने कई बार अवतार लेकर अपने चरित्र के माध्यम से अच्छी बातें सिखाई हैं फिर भी हम परस्पर ईर्ष्या और विद्रोह को फैलाकर देश की तरक्की में बाधक बने हुए है।
यज्ञ में विश्व कल्याण व शांति की कामना से प्रतिदिन आहुतियाँ दी जा रही हैं। यज्ञ में देशभर से संत साधु भी आ रहे हैं। कथा स्थल पर मेला भी लगा हुआ है।