राज्य स्तरीय स्व. भुवन भूषण देवलिया पत्रकारिता पुरस्कार से पत्रकार जयराम शुक्ल सम्मानित,
पत्रकारिता और राष्ट्रवाद पर विद्वानों ने रखे सारगर्भित विचार
गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ भोपाल मध्यप्रदेश रमाकांत उपाध्याय / 9893909059
स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यानमाला समिति की तरफ से रविवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विवि के सभा कक्ष में पत्रकारिता और राष्ट्रवाद पर एक विमर्श का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मप्र के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग थे जबकि अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने की। कार्यक्रम में प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष जगदीश उपासने, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश, भारतीय जनसंचार परिषद नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार राजेश बदल ने प्रमुख वक्ता के रूप में अपने ओजस्वी विचारों से विषय की गम्भीरता को प्रतिपादित किया। जबकि इस विमर्श में विषय प्रवर्तन का कार्य स्वदेश भोपाल के संपादक शिवकुमार ‘विवेक’ ने किया।
इस अवसर पर विंध्य क्षेत्र से नाता रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल को राज्य स्तरीय स्व. भुवन भूषण देवलिया पत्रकारिता पुरस्कार से प्रदेश के चिकित्सा मंत्री विश्वास सारंग ने सम्मानित किया।
भुवनभूषण देवलिया पत्रकारिता सम्मान का इस वर्ष ग्यारहवां वर्ष था। प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार श्री शुक्ल को सक्रिय और सार्थक लेखन के लिए सम्मान प्रदान किया गया। पुरस्कार स्वरू श्री शुक्ल को 11 का चेक, शॉल श्रीफल के साथ स्मृति चिन्ह भेंट किये गए।
इस अवसर पर पत्रकारिता और राष्ट्रवाद पर अपने विचार रखते हुए प्रदेश के चिकित्सा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि जब पत्रकारिता किसी बात को कहती है तो वह नीचे तक जाती है, इसलिए पत्रकार को राष्ट्रवादी होना ही चाहिए। उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर एक वैभवशाली राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे, यह समय की मांग और हमारा राष्ट्र प्रेम भी है। श्री सारंग ने कहा कि कोई भी राष्ट्र सही रूप में तब बनता है जब उसका संघीय ढांचा मजबूत हो। इसे बनाने में आंचलिक पत्रकारिता का बड़ा योगदान है। श्री सारंग ने इस बात पर दुःख जताते हुए कहा कि आजादी के पचहत्तर साल बाद भी हमें यदि राष्ट्रवाद पर चर्चा करनी पड़े तो यह सोचनीय है। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद तो कारखाना निर्माण और पुल निर्माण की बात तो होती रही पर व्यक्ति निर्माण पर किसी ने चर्चा नहीं की।
उन्होंने इस बात पर संतोष जाहिर करते हुए कहा कि स्व भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यानमाला समिति ने जो आज विषय रखा है वह प्रासंगिक है। समिति निरन्तर यह आयोजन कर रही है जो सराहनीय है। श्री सारंग ने कहा कि उनकी अपने जीवन में कभी देवलिया जी से भेंट नहीं हुई लेकिन उनके शागिर्दों से बहुत तारीफ़ सुनी है। ऐसे योग्य गुरु और काबिल पत्रकार नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करते हैं, श्रेष्ठ कार्य के लिए उनके प्रेरक भी बनते हैं। ऐसी विभूति को नमन करता हूं। श्री सारंग ने शुरुआत में स्व भुवन भूषण देवलिया जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।
वर्तमान पत्रकारिता में राष्ट्रबोध का संकट : उपासने
विचार गोष्ठी को ऑनलाइन सम्बोधित करते हुए प्रसार भारती बोर्ड के अध्यक्ष जगदीश उपासने ने कहा कि राष्ट्र के प्रति प्रेम और ईमानदारी का भाव हो तभी पत्रकारिता सार्थक हो सकती है और तभी लोकतांत्रिक व्यवस्था भी सफल रहेगी। श्री उपासने ने कहा कि बहुत से लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद राष्ट्रवाद बढ़ गया है, जबकि ऐसा नहीं है। यह राष्ट्रवाद नहीं बल्कि राष्ट्रबोध कहा जा सकता है, जिसका संकट पत्रकारिता में दिख रहा है। किसी भी राष्ट्र के पत्रकार हो या निवासी उनमें राष्ट्रबोध तो होना ही चाहिए। 2013 की एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रबोध नीचे के स्तर से ही नही ऊपर के स्तर से ही गायब है। श्री उपासने ने कहा कि जो लोग समन्वयवादी संस्कृति की बात करते हैं वह कहीं नहीं है, यह बात सिर्फ भारत में होती है जबकि हम समन्वयवादी नहीं हैं पर सब को स्वीकार कर लेते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि सात हजार पुरानी हमारी संस्कृति है तो यह बोध किसको आएगा। श्री उपासने ने जोर देते हुए कहा कि यदि जब तक एक भी व्यक्ति जीवित रहेगा हमारा भारत और हमारी संस्कृति जीवित रहेगी। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का आनन्द यही है कि आप विरोध तो करें पर किसी का मजाक न बनाएं। पत्रकारिता के पक्षधर होने पर कड़ी आपत्ति जताते हुए प्रसार भारती बोर्ड अध्यक्ष ने कहा कि जिनका काम ही सही सूचना देना है वह स्वयं ही अज्ञानी हैं। श्री उपासने ने पत्रकारों को सलाह देते हुए कहा कि अपनी विचारधारा को सिर्फ सम्पादकीय पेज पर जगह दें, पर समाज में मतभेद पैदा न करें।
पत्रकारिता राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होनी चाहिये : प्रो. सुरेश
पत्रकारिता और राष्ट्रवाद पर अपने विचार व्यक्त करते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति केजी सुरेश ने कहा कि पत्रकारिता किसी विचारधारा की नहीं होनी चाहिए बल्कि पत्रकारिता राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होनी चाहिए। बालकोट हमले का जिक्र करते हुए सुरेश प्रोफेसर सुरेश ने कहा कि कुछ ऐसे विषय पर हमें अपनी सरकार पर विश्वास करना ही चाहिए, न कि किसी दूसरे देश की सेना के प्रवक्ता और या दूसरे राष्ट्र के समाचार पत्रों पर, यह हमारा राष्ट्र प्रेम नहीं है । 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए प्रोफेसर सुरेश ने कहा कि उस समय पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े इसलिए कर दिए थे क्योंकि संपूर्ण राष्ट्र उनके साथ था और यही राष्ट्रवाद है। प्रो. सुरेश ने कहा कि राष्ट्रवाद को इतिहास के पन्नों में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। उसे नाजीवाद और फासीवाद की तरह संकुचित तरीके से जनता के सामने प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि भारत के अलग-अलग जगहों, मठ-मंदिरों या अन्य स्थानों में जो विभिन्न प्रकार की संस्कृति दिखाई देती है, वही हमारा राष्ट्रत्व है और वही भारत का राष्ट्रबोध है। यूक्रेन का जिक्र करते हुए विपक्षी दलों के बयान को हास्यास्पद करार देते हुए प्रो. सुरेश ने कहा कि आप इसलिए विरोध कर रहे कि एक व्यक्ति या दल आपको पसंद नहीं है। वहां फंसे भारतीयों को लेने कोई मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं जाएंगे, पर सरकार ने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए 4 मंत्री भेजे हैं, जो लोगों को सुरक्षित निकालकर ला रहें। उन्होंने कहा कि सरकार की आलोचना राष्ट्र विरोध नहीं है पर वह परिस्थितियों पर निर्भर होनी चाहिए
75 सालों में हम अपना राष्ट्र चरित्र नहीं बना पाए : बादल
पत्रकारिता और राष्ट्रवाद विषय पर व्याख्यान माला को सम्बोधित करते हुए राज्यसभा टीवी के पूर्व निदेशक एवं वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने कहा कि मुझे यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि इन 75 सालों में हम अपना राष्ट्र चरित्र नहीं बना पाए। श्री बादल ने कहा कि यदि हम देश के प्रति ईमानदार नहीं हैं तो हम राष्ट्रद्रोही हैं। उन्होंने कहा कि एक हजार साल से हमारा हिंदुत्व खतरे में नहीं था पर इस सियासी पुट का नतीजा है। उन्होंने कहा कि सियासत ने हमें बांट दिया है, कोई भी दल इसमें कम नहीं है। सब अपने-अपने स्वार्थ के लिए इस तरह के प्रपंच रच रहे हैं। श्री बादल ने कहा कि सियासतदानों ने इसे धंधा बना दिया है। स्व भुवन भूषण देवलिया का जिक्र करते हुए श्री बादल ने कहा कि वह राष्ट्रप्रेम करते थे और अन्य सभी में भी राष्ट्रप्रेम जगाते थे। स्व. आज हर पत्रकार के ह्रदय में विराजमान हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता देश का चौथा स्तम्भ है, यह बड़ी जिम्मेदारी उस समय हमें बुजुर्गों ने दी है, उसे हमें पूरी ईमानदारी से निभाना है।
यह विभाजनकारी ताकतों को उखाड़ फेंकने का समय : प्रो. द्विवेदी
पत्रकारिता और राष्ट्रवाद विषय पर व्याख्यान माला में प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। यह समय विभाजन करने वाली ताकतों को पूरी तरह से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेने का समय है। उन्होंने कहा कि आजादी के समय हमारे नायको और पत्रकारों की लड़ाई स्वराज की थी। आज देश को जोड़ें रखने वाली शक्ति के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। जो स्थान-स्थान पर संघर्षों को हवा दे रहे हैं उनको पहचानने की जरुरत है। प्रो. द्विवेदी ने सवाल उठाते हुए कहा कि हिंदुस्तान में क्या सब कुछ गलत ही हो रहा है। इस षड्यंत्र के कर्ताओं को देखिए किस तरह तिल का ताड बना रहे हैं। मानवता विरोधी विचार हमारे संकट को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम किसी एक विचार, धर्म या पंत को मानने वाले नहीं है। हम भारत को जाने, उसे बनाएं, छोटी-छोटी बातों पर लड़कर उसे महान नहीं बनाएं बल्कि समाज को तोड़ने की जगह जोड़ने वाले तथ्य को लेकर चलना होगा। प्रो. द्विवेदी ने कहा कि भारत बोध का जागरण ही एकमात्र मंत्र है। अनादि काल से जो हमारी शक्ति रही है उसे भारत पर विश्वास रहा है। मीडिया को इस देश की एकता व बहुलता को स्थापित करना होगा, यही हमारा राष्ट्रवाद है क्योकि पत्रकारिता समाज से जुड़ा विषय है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों की पॉलिटिकल लाइन तो होनी चाहिए पर पार्टी लाइन नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन की लोक चेतना ही हमारी मूल चेतना है। मीडिया राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दें।
मीडिया समाज में घोल रहा जाति का जहर : शर्मा
व्यख्यान माला की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा ने कहा कि आजादी के पहले और बाद की पत्रकारिता में बड़ा अंतर आ गया है। आजादी के समय का एक भी अखबार या पत्रिका आज प्रकाशित नहीं हो रही है। उन्होंने कहा कि 1807 में अंग्रेजों ने देश और समाज को बांटने का जो कार्य किया था आज समाज उसी से जकड़न में पूरी तरह फंस गया है। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता देश को जाति के नाम पर बांटने का काम कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि जो अंग्रेजों और मुगलों के प्रिय रहे सिर्फ वही हमारे पाठ्यपुस्तक का हिस्सा क्यों रहे हैं। श्री शर्मा ने कहा कि भारत में जाति प्रथा नहीं थी, बल्कि वर्ण व्यवस्था थी। अंग्रेजों ने हमारी परंपरा को नुकसान पहुंचाने के लिए देश में जातिगत जहर घोलने का काम किया जिसकी शिकार पत्रकारिता भी हो गई। उन्होंने कहा कि वैभव के कारण ही हमारा देश सोने की चिड़िया कहलाता था। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को भीड़ के साथ राष्ट्रवाद को जगाकर चलना होगा।
पत्रकारिता राष्ट्रबोध की प्रखर अभिव्यक्ति थी : विवेक
व्याख्यानमाला में विषय प्रवर्तन करते हुए स्वदेश के संपादक शिवकुमार विवेक ने कहा कि यह वास्तव में आंचलिक पत्रकारिता का सम्मान है। उन्होंने कहा कि आंचलिक पत्रकारिता का स्वरूप बढ़ रहा है। उस समय चौपाल ही पत्रकारिता की कक्षा होती थी। श्री विवेक ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन का फलसफा ही राष्ट्रवाद था। पत्रकारिता राष्ट्रबोध की प्रकार अभिव्यक्ति थी। उन्होंने कहा कि अंग्रेज एक साम्राज्यवादी सत्ता के बोधक थे। वह हमारी संस्कृत और व्यवस्था को खराब कर कर रहे थे। आज भी राष्ट्रवाद की जरूरत है। हमारी भाषा पर आज भी अतिक्रमण है, ऐसे में हमारी पत्रकारिता ही परे चले जाए तो सोचने की जरूरत है।
कार्यक्रम में स्व. देवलिया की धर्मपत्नी श्रीमती कीर्ति देवलिया भी उपस्थित हुईं। कार्यक्रम में सतीश एलिया, आशीष देवलिया, डा अर्पणा और राजीव सोनी ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन आदित्य श्रीवास्तव ने किया। अंत में भुवनभूषण देवलिया स्मृति व्याख्यान माला समिति के सदस्य अशोक मनवानी ने आभार व्यक्त किया।कार्यक्रम में स्मारिका का विमोचन मंत्री श्री सारंग और अन्य अतिथियों ने किया।