अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर आगे बढ़ रहा है भारत : केंद्रीय राज्यमंत्री एल. मुरुगन
चतुर्थ चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल में विभिन्न श्रेणियों में दिए 10 लाख के नगद पुरस्कार
सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री श्री एल. मुरुगन ने दिए पुरुस्कार
तीन दिवसीय फेस्टिवल का रविन्द्र भवन में समापन
गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ भोपाल मध्यप्रदेश रविकांत उपाध्याय / 8085883358
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत जहां एक तरफ निरंतर विकास कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ अपनी सभ्यता और संस्कृति की जड़ों की ओर भी लौट रहा है। यह बात केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री एल. मुरुगन ने रविन्द्र भवन में चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल के चतुर्थ संस्करण के समापन समारोह में कही। श्री मुरुगन ने कहा कि अपनी संस्कृति को सब तक पहुंचाने के लिए आवश्यक है कि हम संस्कृति से जुड़ी कहानियां भी लोगों तक पहुंचाएं। उन्होंने खुशी व्यक्त की कि चित्र भारती के माध्यम से इस तरह की फिल्में बनाई जा रही हैं।
केंद्रीय राज्यमंत्री श्री मुरुगन ने कहा कि भारतीय साहित्य में अनेक ऐसी कहानियां भरी पड़ी है, जो भारत की संस्कृति को दर्शाती हैं लेकिन मुझे हैरत होता है कि आखिर इन पर फिल्में क्यों नहीं बनाई जाती?। वर्तमान समय में फिल्में एक सशक्त माध्यम है, जिसके जरिये दुनिया तक भारत की बात पहुंचाई जा सकती है। केंद्रीय राज्यमंत्री श्री मुरुगन ने भारतीय चित्र साधना को चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल जैसा आयोजन करने की बधाई दी। उन्होंने कहा कि फ़िल्म फेस्टिवल में देशभर से बड़ी संख्या में फ़िल्म निर्माताओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया है, यह महत्व की बात है।
कार्यक्रम के अंत में आयोजन समिति के अध्यक्ष दिलीप सूर्यवंशी ने आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल ने ऐसा वातावरण बना दिया है कि अब मुम्बई, बैंगलुरु, दिल्ली, कोलकाता के बाद भोपाल फ़िल्म निर्माण का मुख्य केंद्र बन सकता है।
विवेक अग्निहोत्री एवं पल्लवी जोशी का सम्मान
‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्माता-निर्देशक श्री विवेक अग्निहोत्री एवं सुश्री पल्लवी जोशी का सम्मान किया गया। इस अवसर पर सभागार में उपस्थित सभी लोगों ने खड़े होकर दोनों के प्रति सम्मान व्यक्त किया।
चित्र भारती से जुड़े कलाकारों को आगामी फिल्म में मिलेगा अवसर
‘द कश्मीर फाइल्स’ की अभिनेत्री सुश्री पल्लवी जोशी ने कहा कि चित्र भारती की ओर से सुझाये गए दो कलाकारों को अपनी अगली फिल्म में लेंगे और उन्हें एक-एक लाख रुपये भी दिया जाएगा। इस मौके पर प्रख्यात चरित्र अभिनेता श्री मुकेश तिवारी ने कहा कि अपने सपनों की खूबसूरती पर यकीन रखियेगा। उनको साकार करने के लिए चित्र भारती का मंच आपके साथ है। निर्देशक श्री अभिनव कश्यप ने कहा कि हमारा कर्तव्य है कि हम युवा पीढ़ी का समर्थन दें और उन्हें नेतृत्व का अवसर दें। इस अवसर पर प्रख्यात अभिनेता डॉ. गजेंद्र चौहान और निर्देशक श्री अभिनव कश्यप ने भी अपने विचार व्यक्त किया।
निर्णायक मंडल के सदस्य योगेश सोमण ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल में आईं फिल्मों के विषय में नवीनता थी। भारतीय चित्र साधना और चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल की जानकारी महासचिव श्री अतुल गंगवार ने दी। इस अवसर पर स्क्रीनिंग समिति और निर्णायक मंडल के सभी सदस्यों का सम्मान किया गया। इसके साथ ही फ़िल्म निर्देशक-निर्माता श्री सुनील पौराणिक और संजय पूरण सिंह चौहान का भी अभिनंदन किया गया। कार्यक्रम का संचालन महाभारत फेम प्रख्यात आवाज कलाकार डॉ. हरीश भिमानी ने किया।
सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री एल. मुरुगन ने रविंद्र भवन में चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल के चतुर्थ संस्करण में पांच विभिन्न श्रेणियों में कुल 10 लाख के नगद पुरस्कार भारतीय चित्र साधना की ओर से दिए। लघु फिल्म ‘छोटी सी बात’ एवं डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘भारत- प्रकृति का बालक’ के निर्माता क्रमशः कबीर शाह और दीपिका कोठारी को 1-1 लाख रुपये राशि के सबसे बड़े पुरस्कार दिए गए।
शॉर्ट फिल्म श्रेणी में मुकेश कुमार की फ़िल्म ‘ब्रूनो’ को द्वितीय और स्मिता भाटी की फ़िल्म ‘विसलिंग मशीन’ को तृतीय पुरस्कार दिया गया। इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए आनंद कुमार चौहान (वाशिंग मशीन), सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता राज अर्जुन (पीलीभीत) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अश्विनी कसर (पाउली) को दिया गया। हरि प्रसाद की फ़िल्म ‘अमेय’, विकास गौतगुटिया की फ़िल्म ‘अननॉन नंबर’ और जगन्नाथ बिस्वास की फ़िल्म ‘चुड़का मुर्मू’ का विशेष उल्लेख किया गया। पुरस्कारों की घोषणा फ़िल्म निर्देशक श्री आकाशादित्य लामा ने की।
डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म श्रेणी में मयंक सिंह की फ़िल्म ‘नानाजी का गांव’ को द्वितीय, सरमाया आर्ट फाउंडेशन की फ़िल्म ‘थोलु बोमलत्ता’ को तृतीय पुरस्कार दिया गया। जबकि तुषार अमरीष गोयल की फ़िल्म ‘द पोस्टर’, अक्षय गौरी की फ़िल्म ‘साइंस थ्रू प्ले’ और प्रज्ञा सिंह की फ़िल्म ‘सेरेंगसिया 1837’ का विशेष उल्लेख्य किया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा फ़िल्म निर्देशक श्री विवेक अग्निहोत्री ने की।
एनिमेशन श्रेणी में अशोक पटेल की फ़िल्म ‘द लास्ट होप’ को प्रथम, हरि प्रसाद की फ़िल्म ‘पावर ऑफ चेंज’ को द्वितीय और धीरेंद्र पखुरिया की फ़िल्म ‘हग ऑफ लाइफ’ को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा प्रख्यात रंगकर्मी श्री वामन केंद्रे ने की।
कैंपस नॉन प्रोफेशनल फ़िल्म श्रेणी में पार्थ बागुल की फ़िल्म ‘मास्क’ को प्रथम, सुशोभित मिश्रा की फ़िल्म ‘आजादियां’ को द्वितीय, नलिनी मेधी की फ़िल्म ‘माते’ को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया। वहीं, इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए पार्थ बागुल (मास्क), सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता मंथन केनेकर (कपाट) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अवंतिका पांडेय (पनही) को दिया गया। इस श्रेणी के पुरस्कारों की घोषणा प्रख्यात अभिनेत्री सुश्री पल्लवी जोशी ने की।
कैंपस प्रोफेशनल फ़िल्म श्रेणी चंदन सिंह की फ़िल्म ‘संसार’ को प्रथम, अनुराज राजाध्यक्ष की फ़िल्म ‘रोपत’ को द्वितीय, मानव सिंह की फ़िल्म ‘अंतिम बद्दुआ’ को तृतीय पुरस्कार दिया गया। वहीं, इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ निर्देशन मानव सिंह (अंतिम बद्दुआ), सर्वश्रेष्ठ पुरुष अभिनेता मुकेश मुसाफिर (छाया) और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अनुराधा राजाध्यक्ष (रोपते) को दिया गया। पुरस्कारों की घोषणा प्रख्यात अभिनेता डॉ. गजेंद्र चौहान ने की।
वीर सावरकर के कारण ही भारत को मिली लता जी की आवाज सुनने को : डॉ. हरीश भिमानी
चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल में लता जी की स्मृति में मास्टर क्लास
चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल में दूसरे दिन 26 मार्च को सुप्रसिद्ध गायिका भारत रत्न स्वर्गीय लता मंगेशकर को समर्पित मास्टर क्लास “यादें : लता मंगेशकर” हुई। लता जी के जीवन से जुड़ी बातें साझा करते हुए प्रसिद्ध आवाज कलाकार डॉ. हरीश भिमानी ने बताया कि वीर सावरकर के कारण ही भारत को लता जी की आवाज सुनने को मिली। सावरकर न होते तो लता जी गाना छोड़ चुकी होती। लता जी ने वीर सावरकर से कहा था कि वह देश सेवा करना चाहती है, भले ही इसके लिए उन्हें गायन छोड़ना पड़े। तब वीर सावरकर ने उन्हें समझाया कि आप जो काम कर रही हो, वह भी देश सेवा का एक माध्यम है। लताजी के मन में वीर सावरकर के प्रति पूरी श्रद्धा थी और वे इसे खुलकर इसे प्रकट करती थीं।
महाभारत में ‘मैं समय हूँ’ आवाज देने वाले डॉ. भिमानी ने कहा कि लता जी छत्रपति शिवाजी महाराज को देवतुल्य मानती थी। उन्होंने कहा कि दुनिया लता जी को सरस्वती मानती है लेकिन वो खुद को मीरा मानती थी। जिनको लता जी अपना पूरा जीवन समर्पित कर सकती थी, वे श्री कृष्ण थे। लता जी सिर्फ कृष्णप्रिय ही नहीं कृष्ण उपासक भी थी। उनकी प्रिय पुस्तक श्रीमद भगवतगीता थी।
लता जी के साथ अपनी पहली मुलाकात के बारे में डॉ. भिमानी ने कहा कि जब मैं पहली बार लताजी से मिला तो मुझे नहीं पता था कि वह मेरी पहली परीक्षा थी। मैं उस परीक्षा में पास हुआ और मुझे निरंतर काम मिलता रहा। यह मेरा सौभाग्य रहा है कि मुझे लताजी ने स्वयं बुलाया था। उन्होंने बताया कि लताजी हमेशा कहा करती थी कि उन्हें दूसरा जन्म न मिले और यदि मिले तो लता मंगेशकर जैसा न मिले। वे साधारण जीवन जीना चाहती थीं। डॉ. भिमानी ने इसके पीछे का कारण बताते हुए कहा कि हमें सफल लोगों का चमकता जीवन तो दिखता है लेकिन उनकी परेशानियाँ नहीं दिखती।
डॉ. भिमानी ने कहा कि लताजी लोगों से बहुत कम बात करती थी लेकिन वे सच्ची बात करती थी। वे सबसे ज्यादा खुद से बात करती थी। उन्होंने एक प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि उन्हें लताजी से दो बार डांट पड़ी है। इस अवसर पर लताजी के प्रिय गानों को सुनाया गया। मास्टर क्लास का संचालन वरिष्ठ कला समीक्षक श्री अनंत विजय ने किया
हमें पाश्चात्य की ओर देखने की जरूरत नहीं, हमारे पास कालिदास जैसी हैं विभूतियाँ : श्री वामन केंद्रे
अभिनय पर केन्द्रित रही 5वीं मास्टर क्लास
चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल में 5वीं मास्टर क्लास ‘अभिनय’ पर केंद्रित रही। मराठी सिनेमा के चर्चित निर्देशक-रंगकर्मी एवं पद्मश्री से सम्मानित श्री वामन केंद्रे ने मास्टर क्लास को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि अमूर्त चरित्र को जिंदा कर लोगों तक पहुँचाने की प्रक्रिया ही अभिनय है। एक नए इंसान को दर्शकों के सामने लाने को ही मैं अभिनय मानता हूँ। एक प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री केंद्रे ने कहा कि हमें पाश्चात्य की ओर देखने की ज़रूरत नहीं है, हमारे पास कालिदास हैं, भरतमुनि हैं, भवभूति और रवींद्रनाथ टैगोर हैं। हमारे पास एक्टिंग, डायरेक्शन सभी की परंपरा है। यही हमारी अमीरी है।
श्री केंद्रे ने प्रशिक्षण के महत्व को समझाते हुए कहा कि अप्रशिक्षित अभिनेता अभिमन्यु की तरह होते हैं और उनका चक्रव्यूह तोड़ने के लिए उनका प्रशिक्षण ज़रूरी है।
टिकट खरीद कर ही देखें थियेटर
श्री वामन केंद्रे ने कहा कि अगर हिन्दी थियेटर को सिनेमा की तरह लोकप्रिय बनाना है, तो पैसे देकर टिकट लेकर देखने जाएँ। दूसरों से भी यही कहें कि वह भी टिकट लेकर ही थिएटर देखने जाएँ। मास्टर क्लास का संचालन भारतीय चित्र साधना के महासचिव श्री अतुल गंगवार ने किया।
सिनेमा को ढूँढना चाहिए समाधान : श्री अभिनव कश्यप
फेस्टिवल में खुले मंच (ओपन फोरम) में सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक श्री अभिनव कश्यप ने युवा फिल्मकारों एवं विद्यार्थियों के साथ सिनेमा और उससे जुड़े पहलुओं पर संवाद किया। श्री कश्यप ने कहा कि वे फिल्म के पार्ट्स या सीक्वल बनाने में यकीन नहीं रखते। गन्ने की तरह बार-बार निचोड़कर रस निकालने की कोशिश की जाती है और पब्लिक से पैसा खींचा जाता है। उन्होंने कहा कि फिल्मों का उद्देश्य समाधान देना होना चाहिए।
श्री कश्यप ने कहा कि ओटीटी और विभिन्न विकल्प आ जाने के बाद आप अब वह कंटेंट नहीं देखेंगे, जो दिखाया जाएगा। अब आपको जो देखना है, आप उधर जाएंगे। आप एक ही चीज देखने के लिए बाध्य नहीं हैं। उन्होंने कहा कि फ़िल्म निर्माताओं को लोगों के बीच में जाकर यह जानना पड़ेगा कि आखिर लोग क्या देखना क्या चाहते हैं।
कमल बनना चाहते हैं तो कीचड़ को अनुपयोगी से उपयोगी बनाना होगा
बॉलीवुड के बारे में पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री कश्यप ने कहा कि अगर कमल बनना चाहते हैं, तो कीचड़ को अनुपयोगी से उपयोगी बनाना पड़ेगा। इस प्रतीक्षा में मत रहिए कि कोई आएगा और आपका काम करेगा, आप खुद आगे आइए और सिनेमा को सार्थक बनाने में योगदान दीजिए। कार्यक्रम के मॉडरेटर श्री राकेश मित्तल थे।।