गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ ऋषिकेश उत्तराखंड रमाकांत उपाध्याय/ 9893909059
षटतिला एकादशी 28/29 जनवरी विशेष
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{ऋषिकेश के विद्वान पंडित देव उपाध्याय जी से जानिए षटतिला एकादशी व्रत का महत्व व विधान }
माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत रखा जाता है। इस वर्ष 28 जनवरी शुक्रवार के दिन स्मार्त एवं वैष्णव (सन्यासी एवं गृहस्थ) और 29 जनवरी शनिवार के दिन (निम्बार्क) सम्प्रदाय के अनुयायी इस व्रत को रखेंगे। पुराणों के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से इससे मनुष्य के अनजाने में किये सभी पाप समाप्त हो जाते है तथा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है. इसलिए माघ मास में पूरे माह व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए. काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए।
षटतिला एकादशी व्रत विधि
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एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि मनुष्य कौन सा दान अथवा पुण्य कर्म करे जिससे इनके सभी पापों का नाश हो. तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि हे ऋषिवर माघ मास लगते ही मनुष्य को सुबह स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए. व्यक्ति पुष्य नक्षत्र में तिल तथा कपास को गोबर में मिलाकर उसके 108 कण्डे बनाकर रख लें. माघ मास की षटतिला एकादशी को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत करने का संकल्प करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए. यदि व्रत आदि में किसी प्रकार की भूल हो जाए तब भगवान कृष्ण जी से क्षमा याचना करनी चाहिए. रात्रि में गोबर के कंडों से हवन करना चाहिए. रात भर जागरण करके भगवान का भजन करना चाहिए. अगले दिन भगवान का भजन-पूजन करने के पश्चात खिचडी़ का भोग लगाना चाहिए. व्यक्ति इस प्रार्थना को ऎसे भी बोल सकते हैं कि हे प्रभु आप दीनों को शरण देने वाले हैं. संसार के सागर में फंसे हुए लोगों का उद्धार करने वाले हैं. इसके बाद व्यक्ति को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए. ब्राह्मण को जल से भरा घडा़, छाता, जूते तथा वस्त्र देने चाहिए. भगवान विष्णु ने नारद जी को एक सत्य घटना से अवगत कराया और नारदजी को एक षटतिला एकादशी के व्रत का महत्व बताया. इस प्रकार सभी मनुष्यों को लालच का त्याग करना चाहिए. किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए. षटतिला एकादशी के दिन तिल के साथ अन्य अन्नादि का भी दान करना चाहिए. इससे मनुष्य का सौभाग्य बली होगा. कष्ट तथा दरिद्रता दूर होगी. विधिवत तरीके से व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी।
स्थानीय परंपरा के अनुसार कहीं कहीं प्रात:काल और कहीं सांयकाल में षटतिला एकादशी का पूजन होता है। अत: इस व्रत की पूजा का समय आप अपनी परंपरा के अनुसार ही चुनें। सनातन धर्म में माघ माह को नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। इसी माह में पड़ने वाली षटतिला एकादशी इस बात को बताती है कि धन आदि की तुलना में अन्नदान सबसे बड़ा दान है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य के नरक से मुक्ति पाने के उपाय के विषय में बताते हुए कहा- मनुष्य को माघ माह में अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ और चुगली आदि का त्याग कर ही माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत करना चाहिए। इस दिन तिल का विशेष महत्त्व होता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। तिल के कई प्रकार के उपयोग के कारण ही इस व्रत को षटतिला एकादशी कहते हैं।
कैसे करें पूजा
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पूरे वर्ष में पड़ने वाली अन्य 24 एकादशी से षटतिला एकादशी की पूजा थोड़ा भिन्न होती है। इसकी पूजा के लिए एक दिन पूर्व माघ माह कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाने चाहिए। इसके बाद दशमी के दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए और भगवान का स्मरण करना चाहिए। इसके पश्चात अगले दिन षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन किया जाना चाहिए। उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूजा कर अर्घ्य देना चाहिए।
सांयकाल ऐसे करें पूजा
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षटतिला एकादशी की रात को भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। साथ ही रात्रि को 108 बार “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते हुए उपलों को हवन में डालते हुए स्वाहा करना चाहिए। पूजा के बाद घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान करना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय का दान भी करना उत्तम होता है। तिल से स्नान, उबटन, होम, तिल का दान, तिल को भोजन व पानी में मिलाकर ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत में तिल के महत्व को इस श्लोक से समझा जा सकता है-
तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।
तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी॥
अर्थात इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान करने, उबटन लगाने और होम करने में करना चाहिए, साथ ही तिल मिश्रित जल पीना चाहिए, तिल दान करना चाहिए और तिल का भोजन करना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है।
तिल का महत्व
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विभिन्न मान्यताआें के अनुसार षटतिला एकादशी पर तिल से भरा हुआ बर्तन दान करना बेहद शुभ माना जाता है। कहते हैं तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होंगी, उतने हजार बरसों तक दान करने वाला स्वर्ग में निवास करता है। इसकी कथा के अनुसार भी तिल और अन्नदान बहुत जरूरी है। यदि धन का दान ना कर सकें तो इस व्रत में सुपारी का दान भी किया जा सकता है। जो लोग एकादशी व्रत ना कर सकें उन्हें खान-पान और व्यवहार में सात्विक रहना चाहिए। इस दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा आदि खाना उचित नहीं समझा जाता और झूठ, ठगी एवं अन्य तामसी कार्यों का त्याग करने के लिए कहा जाता है। एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित माना जाता है।
इस दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग किया जाता है।
1. तिल के जल से स्नान करें
2. पिसे हुए तिल का उबटन करें
3. तिलों का हवन करें
4. तिल मिला हुआ जल पीयें
5. तिलों का दान करें
6. तिलों की मिठाई और व्यंजन बनाएं
मान्यता है कि इस दिन तिलों का दान करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
व्रत की कथा
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इस व्रत की कथा इस प्रकार है। कहते हैं कि एक बार नारद मुनि तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए विष्णु लोक पहुंचे। जहां विष्णुजी को प्रणाम करके उन्होंने अपनी एक जिज्ञासा प्रकट कर उनसे षटतिला एकादशी की कथा को विस्तार से बताने के लिए कहा। तब भगवान विष्णु ने बताया कि प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह विष्णु जी की भक्त थी। वह उनके सभी व्रतों को नियमपूर्वक किया करती थी। एक बार उस ब्रह्मणी ने एक माह तक उपवास रखकर भगवान की प्रार्थना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वह कभी किसी भी देवता को अन्न दान नहीं करती थी। तब श्री हरि ने सोचा यदि यह मृत्यु के बाद उनके लोक आएगी तो भी अतृप्त ही रहेगी। इसलिए एक दिन वे स्वयं उसके घर भिक्षा लेने पहुंच गए। जब उन्होंने ब्राह्मणी से भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिंड उठाकर उनके हाथों में रख दिया। वे पिंड लेकर अपने धाम लौट आए। समय बीतता गया और ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई। वह वैकुण्ठ लोक आई जहां उसें एक कुटिया और उसके साथ एक आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया में आम का पेड़ देख वह घबरा गई। तब वह ब्राह्मणी श्री विष्णु के पास आईं और बोली कि उसने तो सारे नियम धर्म का पालन किया फिर उसे एकांतवास जैसी ये सजा क्यों मिली। तब भगवान ने उससे कहा ये उसके कभी भी किसी को अन्नदान नहीं करने का दंड है। इस ब्राह्मणी ने क्षमा मांगते हुए दंड से मुक्ति का मार्ग पूछा। तब भगवान ने उसे उपाय बताते हुए कहा कि आप अपनी कुटिया का द्वार बंद कर लो आैर जब देव कन्याएं मिलने आएं तो तभी दरवाजा खोलना जब वे षटतिला एकादशी व्रत की विधि बता दें।’ उसने ठीक वैसा ही किया। व्रत की कथा और विधान को जानकर ब्राह्मणी ने वैसा ही किया और जल्द ही उसकी कुटिया मरने के बाद भी धन-धान्य और अन्न से भर गई। इस तरह वह अपनी इंद्रियों पर हमेशा संयम भी रख सकी।
षटतिला की तिथि और मुहूर्त
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एकादशी तिथि आरंभ 27 जनवरी रात्रि
02 बजकर 16 मिनट से
एकदशी तिथि समाप्त- 28 जनवरी रात्रि 11 बजकर 35 मिनट तक
एकादशी व्रत पारण समय- 28 जनवरी को व्रत रखने वालो के लिए पारण 29 जनवरी प्रातः दोपहर 07 बजकर 11
से मिनट से 09 बजकर 20 मिनट तक रहेगा।
29 जनवरी के दिन व्रत रखने वालो के लिए पारण का समय 30 जनवरी के दिन सूर्योदय से 1 घंटे तक रहेगा।
भगवान जगदीश्वर जी की आरती
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ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
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