गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल@गंजबासौदा/ वेदांत आश्रम जीवाजीपुर प त्रिदिवसीय गुरु पूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।
महोत्सव के द्वितीय दिवस पर स्वामी डॉ राम कमल दास वेदांती जी ने बताया कि सुर दुर्लभ मानव जीवन सांसारिक विषय भोगों में पड़े रह कर नष्ट करने के लिए नहीं है, बल्कि सदगुरू के उद्दिष्ट उपदेशों पर चलते हुए लौकिक और पारलौकिक दोनों ही जीवन को सुधारना चाहिए। गुरु दत्तात्रेय ने अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए 24 गुरु किये, जिनसे उन्होंने ज्ञान अर्जित कर संसार की नश्वरता देखते हुए ईश्वर भजन में ही श्रेष्ठता को समझा था। गुरु दीक्षा ग्रहण करना ही पर्याप्त नहीं है अपितु गुरुद्वारा ग्रहण किए गए मंत्र का जाप तथा अपने इष्ट देव के श्रेष्ठ आचरण को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
स्वामी श्री वेदांती जी महाराज ने बताया कि वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति गुरु की सेवा करने से ही मिलती है गुरु को निर्लोभ तथा शिष्य को उदारभाव का होना चाहिए। इस धरती पर ईश्वर ने जब राम और कृष्ण के रूप में अवतार लिया तो उन्होंने भी अपने गुरु की सेवा और उनकी आज्ञा पर चलकर आदर्श शिक्षाएं प्राप्त की। वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति बगैर गुरु के प्राप्त नहीं हो सकती। जैसे बिना जल के नौका नहीं चल सकती। ऋषि बर्तन्तू एवं शिष्य कौत्स की कथा को प्रस्तुत करते हुए श्री वेदांती जी ने बताया कि कौत्स के मन में गुरु को दक्षिणा देने का भाव उदित हुआ परंतु गुरु ने कहा कि यदि शिष्य गुरु की पढ़ाई हुई विद्याओं को अपने जीवन में उतार लेता है तो वही उसकी सच्ची गुरु दक्षिणा होती है किंतु कौत्स ने फिर भी उनसे दक्षिणा मांगने का आग्रह किया तो उन्होंने 14 विद्याओं पढ़ाने के कारण 14000 मुद्राएं मांगने की याचना की जिन्हें अयाचक होने पर भी कौत्स ने महाराज रघु से मुद्राएं दान में लेकर अपने गुरु को समर्पित की प्रथम गुरु अपने माता-पिता, दूसरे गुरु शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक और फिर परम गुरु जो अपने जीवन के परम लक्ष्य परमात्मा का साक्षात्कार करा दें। ज्ञान प्राप्त करने की कोई अवस्था नहीं होती धु्रव ने केवल 5 वर्ष की अवस्था में अपनी सौतेली मां सुरुचि के कड़वे वचन सुनकर महर्षि नारद को अपना गुरु बनाया और मात्र 6 मास में ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त किया मानव जीवन की सार्थकता ईश्वर भक्ति में ही सन्निहित है।