श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव का आयोजन
गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @महाराष्ट्र रमाकांत उपाध्याय/
जीवन मै शिक्षा के साथ साथ संस्कार महत्वपूर्ण हैं। अपने बच्चों को ऐंसे विद्यालयों में अध्ययन कराएं जहां शिक्षा के साथ साथ संस्कार दिए जावें। कॉन्वेंट – जैसे स्कूलों में आप अपने बच्चों को बिल्कुल भी न पढायें। ऐसे स्कूलों में शिक्षा तो दी जाती है, पर संस्कार नहीं दिए जाते और संस्कार हीन शिक्षा बहुत ही कष्ट दायी होती है। यह बात अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक पंडित महेन्द्रकृष्ण शास्त्री ने महाराष्ट्र के नंदुरबार भादवड में पितृपक्ष के उपलक्ष्य में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा महोत्सव में कहीं।
उन्होंने कहा कि अजामिल की भी ऐसी ही दुर्गति हूई थी। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के पश्चात् संस्कार विहीन हो गया।और एक गणिका का संग प्राप्त करके चरित्रहीन- संस्कार हीन होगया था। संतो के आगमन से और संतो कि संगति प्राप्त करके उसने अपने दसवें पुत्र का नाम नारायण रखा और अंत समय मै यमदूतों से मुक्त होकर भगवत् पार्षदों के साथ परम धाम को चला गया।
शिक्षा- संस्कार- चरित्र – और विवेकशील व्यक्ति ही सम्माननीय होता है। भगवान कि भक्ति करने के लिए उम्र कि आवश्यकता नहीं होती। ध्रुव जी ने प्रहलाद जी ने सिर्फ ५ वर्ष की आयू मै ही भगवान को प्राप्त करलिया था। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन मै ४ नियम अपना लिए तो फिर वो अजेय हो जाता है।
१- नित्य गाय को ईश्वर समझ कर सेवा – पूजन करना, २- अखण्ड नित्य यज्ञ करना।
३-. गुरू का हमेशा सम्मान करना।
४- द्वार पर कोई भी संत-ब्राम्हण आवे तो कभी भी उसका अनादर न करना। और प्रयास करना कि वो आपकी चौखट से खाली हाथ न जावे।
यदि ऐसा आपने आजीवन नियम वनालिया तो फिर समझो आप सर्वत्र अजेय हो जायेंगे, राजा वलि ने यही नियम अपना कर चौदह लोकों पर अपना अधिपत्य जमा लिया। पर देवताओं पर दया का भाव रखते हुवे अदिति के आंगन मै साक्षात् वामन भगवान प्रकट हुुुए और तीन पग भूमि कि भिक्षा मांगने लिए राजा वलि के दरवार मै पहुंचे।
भगवान शुकदेव जी ने संक्षिप्त मै राजा परिक्षित को रामकथा श्रवण कराकर चन्द्रवंश का वर्णन सुनाया। और कंस के काराग्रह मै देवकी – वसुदेव के सामने चतुर्भुज रूप से प्रकट होगये क्योंकि भगवान अजन्मा है वो कभी किसी के गर्भ मै नहीं आते भगवान तो प्रकट होते है। पर वसुदेव और देवकी के पूर्व जन्म कि भक्ति पर प्रभू अत्यंत प्रसन्न होकर देखते -देखते ही नन्हे से वालक वनगये। आकाश मण्डल से देवताओं ने पुष्पों की वृष्टि की। भगवान को लेकर वसुदेव जी गोकुल जाने लगे पर ईश्वर का स्पर्श होते ही वसुदेव की सारे वंधन खुल गये। हजारों दरवाजों के ताले टूट गये सैनिक मूर्छित होगये। वसुदेव जी ने यमुना जी पार करके गोकुल मै यशोदा जी के यहाँ भगवान को छोडकर वहां से कन्या को लेकर आये। धूम धाम से भगवान का जन्मोत्सव मनाया सम्पूर्ण व्रज चौरासी कोस मण्डल मै अपार आनंद छा गया।
कथा में महिलाएं पुरुषों सहित भारी संख्या में नन्हे बालक बालिकाएं भी पहुँच रहे हैं। संगीतमय भजन सुनकर भक्त मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।