गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ नई दिल्ली रमाकांत उपाध्याय / 9893909059
राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) ने पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (बीपीआरएंडडी) के सहयोग से मानव तस्करी विरोधी जागरूकता पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया।एक दिवसीय जागरूकता सत्र में मानव तस्करी के परिचय,अवधारणा,प्रकार और मौजूदा प्रतिक्रिया प्रणाली और तस्करी के मनोवैज्ञानिक सामाजिक प्रभाव के साथ-साथ इसकी रोकथाम में नागरिक समाज संगठनों की भूमिका पर चर्चा की गई।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष सुश्री रेखा शर्मा और पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो के महानिदेशक बालाजी श्रीवास्तव ने इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की। आयोग ने पीएम नायर, पूर्व-डीजी(एनडीआरएफ) एवं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (टीआईएसएस) में पूर्व प्रोफेसर, मध्य प्रदेश पुलिस में राज्य औद्योगिक सुरक्षा बल (एसआईएसएफ) के अतिरिक्त आईजी वीरेन्द्र मिश्र, राष्ट्रीय मानसिक जाँच एवं स्नायु विज्ञान संस्थान,(निमहंस) में व्यवहार विज्ञान विभाग के पूर्व डीन एवं पूर्व निदेशक, डॉ. शेखर पी. शेषाद्रि तथा इंपल्स एनजीओ नेटवर्क की संस्थापक सुश्री हसीना खरभिह को रिसोर्स पर्सन के रूप में आमंत्रित किया।
अध्यक्ष रेखा शर्मा ने प्रभावी मुकाबले के लिए स्रोत पर मानव तस्करी को रोकने के महत्व पर जोर दिया। “हमें तस्करी की रोकथाम पर ध्यान देना होगा। राष्ट्रीय महिला आयोग ने अपना स्वयं का मानव तस्करी रोधी प्रकोष्ठ स्थापित किया है और यह अभी शुरुआत है। उन्होंने कहा कि आज की संगोष्ठी के माध्यम से, हम सभी को मानव तस्करी और इसके प्रभावी मुकाबले के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए आगे का रास्ता खोजना होगा”।
श्री बालाजी श्रीवास्तव ने कहा कि पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो साइबर अपराध, महिला सुरक्षा जैसे विभिन्न विषयों पर कई सेमिनार और क्षमता निर्माण कार्यशालाओं का आयोजन कर रहा है और राष्ट्रीय महिला आयोग के साथ यह सहयोगात्मक प्रयास मानव तस्करी के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने में एक लंबा रास्ता तय करेगा।
संगोष्ठी को चार तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया था; ‘ परिचय : मानव तस्करी की अवधारणा, पैटर्न और मौजूदा प्रतिक्रिया प्रणाली ‘, ‘मानव तस्करी के विभिन्न आयाम’, ‘तस्करी का मनोवैज्ञानिक सामाजिक प्रभाव’ और ‘मुक्ति, मुक्ति के बाद देखभाल और पुनर्वास में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका’।
‘परिचय: मानव तस्करी की अवधारणा, पैटर्न और मौजूदा प्रतिक्रिया प्रणाली पर तकनीकी सत्र में, श्री पीएम नायर ने मानव तस्करी से निपटने के लिए प्रवर्तन एजेंसियों, पुलिस और इसकी प्रभावी रोकथाम के लिए गैर सरकारी संगठनों के बीच तालमेल बनाने और आंदोलन को युवाओं और पंचायतों के स्तर तक ले जाने पर जोर दिया। श्री नायर ने कहा कि “मानव तस्करी विरोधी प्रकोष्ठ (एएचटीसी) की स्थापना आसान है लेकिन परस्पर सहयोग आवश्यक है। मानव तस्करी के खिलाफ युवाओं, पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों को सशक्त बनाने से बदलाव लाने में मदद मिलेगी। इसे पहचानो, इस पर बोलो, कार्य करो और रोको”।
श्री वीरेंद्र मिश्रा ने मानव तस्करी से निपटने के लिए 4पी पर ध्यान केंद्रित किया; अवैध व्यापार में रोकथाम, संरक्षण, अभियोजन और भागीदारी और आपराधिक न्याय प्रणाली और सामाजिक न्याय प्रणाली की भूमिका। अवैध मानव व्यापार के विभिन्न आयामों’ पर सम्पन्न सत्र में “तस्करी कमजोर पक्षों का शोषण होता है और मानव तस्करी को रोकने के लिए इस कमजोरी के कारणों का हल तलाशना महत्वपूर्ण है।”
डॉ शेषाद्रि ने अवैध व्यापार के मनोवैज्ञानिक सामाजिक प्रभाव पर सत्र में बोलते हुए कहा कि कई बार परिवार पीड़ित के लिए सबसे अच्छी जगह नहीं होती है और किसी व्यक्ति को उसी स्थान पर वापस भेजना अन्यायपूर्ण और क्रूरता होता है जहां से उसे अवैध व्यापार में डाला गया था। इससे मुक्त कराए गए व्यक्तियों के लिए सही प्रकार की परामर्श की पहचान के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, “हमें यह समझना चाहिए कि निर्देश, सलाह, परामर्श और चिकित्सा समान नहीं हैं”।
पिछले तकनीकी सत्र में ‘मुक्ति, मुक्ति के बाद देखभाल और पुनर्वास में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका’ विषय पर सुश्री हसीना खरभिह ने तस्करी से बचाए गए लोगों को समाज में वापस लाने पर बात की। “हर कोई सिलाई या कढ़ाई नहीं करना चाहता। यह पुनर्वास नहीं है। हमें मुक्त कराए गए बचे लोगों की आकांक्षाओं को समझना होगा और इन आकांक्षाओं को ध्यान में रखना होगा। सुश्री खरभिह ने कहा कि सरकार, गैर सरकारी संगठनों और सीएसआर भागीदारी के सहयोग से एक पीपीपी मॉडल इन महिलाओं के सफल पुनर्वास और सशक्तिकरण में मदद कर सकता है”।
तकनीकी सत्रों के बाद विस्तृत ओपन हाउस चर्चा हुई और रिसोर्स पर्सन्स ने मानव तस्करी से निपटने के लिए आगे का रास्ता सुझाया। विशेषज्ञों द्वारा दिए गए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव यह थे कि प्रत्येक राज्य महिला आयोग का अपना एक मानव तस्करी रोधी प्रकोष्ठ होना चाहिए, मानव तस्करी के मामलों में पालन करने के लिए सभी संगठनों के लिए एक टेम्पलेट/मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बने, सभी हितधारकों का संयुक्त प्रशिक्षण एवं कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में मानव तस्करी रोधी प्रकोष्ठों की स्थापना किए जाने के साथ ही योजनाओं और मुआवजे सहित कानूनी व्यवस्था में उपलब्ध प्रावधान अन्य सुझावों के साथ-साथ पंचायत स्तर पर सभी को इसकी जानकारी होनी चाहिए।
प्रतिभागियों में राज्य महिला आयोग, राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के महिला एवं बाल विकास विभाग, वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, अर्धसैनिक बलों के वरिष्ठ अधिकारी, सरकारी संगठन, राष्ट्रीय आयोग, प्रशासनिक, न्यायपालिका और पुलिस प्रशिक्षण संस्थान, गैर-सरकारी संगठन,चिकित्सा संस्थानों के निदेशक तथा विश्वविद्यालय/ कॉलेज शामिल थे।
राष्ट्रीय महिला आयोग ने 2 अप्रैल, 2022 को मानव तस्करी के मामलों से निपटने, महिलाओं और लड़कियों के बीच जागरूकता बढ़ाने, क्षमता निर्माण और तस्करी विरोधी इकाइयों के प्रशिक्षण और कानून प्रवर्तन मशीनरी को संवेदनशील तथा सशक्त बनाने के लिए एक मानव तस्करी विरोधी प्रकोष्ठ (एएचटीसी) की स्थापना की है।