“एक जिला-एक उत्पाद”
नवरात्रि पर्व पर भक्तों को बाँस के डिब्बों में दिया प्रसाद
आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के रोडमेप में शामिल की “एक जिला-एक उत्पाद” योजना में मध्यप्रदेश के सभी जिले लोकल फॉर वोकल की दिशा में तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। हर जिले में स्थानीय तौर पर तैयार की जा रही सामग्रियों और उत्पादित विशेष फसलों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने और रोजगार के अवसर बढ़ाने का काम किया जा रहा है। इसी क्रम में देवास जिले में बाँस उत्पादन का चयन किया गया है। जिले में बाँस से बनने वाले उत्पाद देवास में ही नहीं बल्कि देश और विदेश तक पहुँच रहे हैं। बाँस के उत्पादों से जिले को एक अलग ही पहचान तो मिल ही रही है स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।
अनूठा नवाचार
नवरात्रि पर्व में देवास जिला प्रशासन ने “एक जिला-एक उत्पाद” योजना में एक अनूठा नवाचार किया। यहाँ के प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक माँ चामुंडा मंदिर में दर्शन के लिए आए भक्तों को बाँस से बने डिब्बों में प्रसाद वितरित किया गया, जिसकी भक्तों ने खुले मन से सराहना की। माता की टेकरी पर अब बाँस के डिब्बों के उपयोग का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। बाँस से बने अन्य उत्पाद का प्रयोग घरेलू के साथ ही सौंदर्य प्रसाधनों में भी हो रहा है। बाजार में अच्छी मांग से रोजगार भी बढ़ रहा है।
भोपाल रोड स्थित जामगोद के पास आर्टिजन कंपनी बाँस के विभिन्न उत्पाद बना रही है। कम्पनी के सीईओ श्री देवोपम मुखर्जी बताते है कि भारत ही नहीं दुनिया का पहला प्रोसेस इंजीनियरिंग डेबू बोर्ड देवास में तीन वर्ष पहले स्थापित हुआ। इमारती लकड़ियों में सबसे अच्छा प्रोडक्ट डेबू कटंग बाँस है, जो मुख्य रूप से मध्यप्रदेश में ही पाई जाने वाली बाँस की प्रजाति है। इस वजह से ही कंपनी ने अपना मुख्य सेंटर देवास में रखा है। यहाँ तैयार हो रहे बाँस उत्पादों से बाँस उत्पादक किसानों को भी लाभ पहुँच रहा है। कम्पनी मध्यप्रदेश सहित अन्य प्रांतों में बाँस का काम कर रही है। जिला प्रशासन की पहल पर कंपनी को नवरात्रि में प्रसाद वितरण के लिए बाँस पैकेट बनाने का आर्डर मिला, जिसे काफी सराहा गया है। अब कंपनी कटंग बाँस की पौध तैयार कर उन किसानों को भी उपलब्ध करा रही हैं, जो बाँस की खेती में रुचि रख अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं। बाँस की खेती कम पानी और कम लागत की है।
यह उत्पाद हो रहे हैं तैयार
स्थानीय कटंग बाँस से वर्तमान में लिविंग रूम, शयन कक्ष, भोजन कक्ष और बाथरूम फर्नीचर, रसोई उत्पाद, फ्लैश और पैनल दरवाजे, रंग विकल्प सहित प्रमुख उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। यहाँ तैयार फर्नीचर भारत के अलावा कई देशों में भी निर्यात किया जा रहा है। सामग्री तैयार होने के बाद अंत में शेष बचे बाँस के कचरे से बायो डीजल भी बनाया जा रहा है। स्थानीय महिलाएँ बताती हैं कि आधुनिक मशीनों के माध्यम से बाँस के डिब्बे सहित अन्य फर्नीचर का काम कर वे प्रतिमाह 10 से 15 हजार रूपये मासिक प्राप्त कर रही हैं।