भगवान श्री रामदेव का अवतार संवत् १४६१ भांदों सुदी दोज शनिवार को पोखरण के तोमरवंशी राजा अजमल के यहां हुआ था। वह भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त और धर्मपरायण राजा थे,लेकिन नि:संतान होने के कारण दुखी रहते थे। नि:संतान होने के कारण उन्होंने द्वारकाधीश यात्रा के दौरान समुद्र में देह त्यागने का संकल्प किया और कूद गए। लेकिन जब आंख खुली तो वह द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के सामने थे। भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर बरदान मांगने को कहा तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण जैसा पुत्र मांगा। श्रीकृष्ण ने स्वंय बलरामजी के साथ उनके घर अवतरित होने का वरदान दिया। इसी वरदान के कारण पहले बलरामजी ने वीरमदेव के रूप में राजा अजमल की पत्नि मैढ़ादे के गर्भ से जन्म लिया, इसके नौ माह बाद भगवान श्रीकृष्ण श्रीरामदेव के रूप से पालने में अवतरित हुए। भगवान ने बालकाल से ही अपनी बाल लीलाएं दिखाना प्रारंभ की। पालने में प्रकट होने के बाद....
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