गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @भोपाल रमाकांत उपाध्याय/
कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था से गौरवान्वित मध्यप्रदेश कृषकों को सक्षम और सम्पन्न बनाने के लिए कृत-संकल्पित है। राज्य सरकार ने किसानों के हितों को सर्वोपरि रखते हुए लगातार कृषि कल्याणकारी योजनाओं और नवाचारों को बढ़ावा दिया है और किसान हित में ऐतिहासिक निर्णय भी लिए हैं। इसके सुखद परिणाम प्रदेश की खुशहाली के रूप में आ रहे है। अन्नदाताओं में विश्वास बढ़ा है और प्रदेश आत्म-निर्भरता की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है।
विगत डेढ़ दशक में प्रदेश में बोई जाने वाली अधिकांश फसलों ने उत्पादन तथा उत्पादकता के क्षेत्र में नित नए कीर्तिमान स्थापित किये हैं। सोयाबीन की फसल तो मध्यप्रदेश की पहचान के साथ किसान बंधुओं की भी ताकत बन गई है। यह खरीफ मौसम में प्रदेश में सर्वाधिक बोई जाने वाली फसल है। इसके अलावा अरहर, मूंग, उड़द, धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, कोदों, कुटकी, तिल, कपास आदि के उत्पादन और खरीदी में देश में मध्यप्रदेश अग्रणी राज्यों में शामिल है। वहीं रबी में गेहूँ, चना, मटर, मसूर, सरसों, गन्ना, अलसी आदि प्रमुख फसलें हैं। इनमें गेहूँ का रकबा सर्वाधिक है। गेहूँ की उत्पादकता के लिये किये गये प्रयासों से इसका क्षेत्रफल, उत्पादन तथा उत्पादकता भी तेजी से बढ़ रही है। कपास तथा गन्ना फसल भी हमारी प्रमुख नकद फसलें हैं। कृषि क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा दिये जाने वाले सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘‘कृषि कर्मण‘ को मध्यप्रदेश द्वारा लगातार जीतने का गौरव हासिल करना वास्तव में अन्नदाताओं की कड़ी मेहनत और किसान-कल्याणकारी योजनाओं का ही परिणाम है।
म.प्र. में कृषि हितैषी कदमों को निरंतरता
कृषि हितों को लेकर विभिन्न आयामों को दृष्टिगत रखते हुए राज्य सरकार लगातार कदम उठा रही है। ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की समर्थन मूल्य में खरीदी से प्रदेश के किसान बंधुओं में और ज्यादा खुशहाली आएगी और उनका विश्वास बढ़ेगा। इसको ध्यान में रखते हुए ग्रीष्मकालीन वर्ष 2020-21 एवं विपणन वर्ष 2021-22 के लिये पंजीकृत कृषकों से फसल उपार्जन के लिये मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ को अधिकृत किया गया है। इन फसलों का उपार्जन आगामी 15 सितम्बर तक किया जायेगा। प्रदेश में ग्रीष्मकालीन वर्ष 2020-21 एवं विपणन वर्ष 2021-22 में भारत सरकार की प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के अंतर्गत प्राइस सपोर्ट स्कीम एवं मूल्य स्थिरीकरण कोष में उपार्जन के लिये मंजूरी दी गई है। अब तक समर्थन मूल्य पर 3 लाख 29 हजार मीट्रिक टन ग्रीष्मकालीन मूंग का उपार्जन किया जा चुका है।
आत्म-निर्भर म.प्र. के निर्माण में कृषि क्षेत्र महत्वपूर्ण
आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के निर्माण में कृषि क्षेत्र की महत्वपूर्ण भागीदारी है। कृषि उत्पादन को बढ़ाना, उत्पादन की लागत को कम करना, कृषि उपज के उचित दाम दिलाना और प्राकृतिक आपदा या अन्य स्थिति में उपज को हुए नुकसान में किसान को पर्याप्त क्षतिपूर्ति देना हमारी प्राथमिकताओं में है। गेहूँ उपार्जन में प्रदेश अब अग्रणी राज्य में शुमार हो गया है। किसानों के हित में कृषि उपज मंडी अधिनियम में संशोधन करते हुए ई-ट्रेडिंग का प्रावधान और किसानों को उपार्जन केन्द्र के साथ ही मंडी के अधिकृत निजी खरीदी केन्द्र और सौदा-पत्रक व्यवस्था के माध्यम से भी फसल बेचने की सुविधा प्रदान की गई।
स्वामित्व योजना में मध्यप्रदेश भी
प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना से भारत के ग्रामीण समाज का विकास और प्रगति से सीधे जुडने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। भारत का आम किसान गाँवों में रहता है, उसके लिए खेती और उसकी मिट्टी आस्था का सवाल है। योजना में ट्रायल के तौर पर जिन 6 राज्यों का चयन किया गया है, उसमें मध्यप्रदेश भी है। पूरे प्रदेश के किसान इस योजना से अधिक से अधिक लाभान्वित हो, इसके लिए हम लगातार समन्वय और प्रशासनिक सुदृढ़ता से काम कर रहे है। योजना से लाभान्वित प्रथम हितग्राही श्री रामभरोस विश्वकर्मा प्रदेश के हरदा जिले का निवासी है।
कृषि अवसंरचना कोष के उपयोग में अग्रणी म.प्र.
पिछले कुछ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा किसानों की आय को दोगुना करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये हैं। देश में कृषि अधोसंरचना में सुधार और सुदृढ़ करने के लिए वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कृषि अवसंरचना कोष की स्थापना की गई है। इसमें मध्यप्रदेश को साल 2020-21 में 7500 करोड़ रूपये का आवंटन प्राप्त हुआ है, जिसके उपयोग में प्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है। किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आधुनिक मंडियों की स्थापना, फूड पार्क, शीत गृहों की श्रृंखला स्थापित करने के साथ साइलोस एवं वेयर हाउस के निर्माण को मिशन मोड में प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे किसान अपनी उपज को एम.एस.पी. के स्थान पर एम.आर.पी. पर बेचने हेतु सक्षम होंगे। बहुत ही हर्ष का विषय है कि मध्यप्रदेश इसमें अग्रणी है।
नेशनल एग्रीकल्चर इन्फ्रा फायनेंसिंग फेसिलिटी पोर्टल
नेशनल एग्रीकल्चर इन्फ्रा फायनेंसिंग फेसिलिटी (एआईएफ़) पोर्टल बहुत ही कम समय में एआईएफ़ पोर्टल पर 2,352 आवेदन आये हैं। इनका लगातार सत्यापन किया जा रहा है और 618 करोड़ का भुगतान भी बैंकों द्वारा कर दिया गया है। इस योजना का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में आधारिक तंत्र को मज़बूत करना है, जिससे देश के बड़े बाज़ारों तक किसानों की पहुँच सुनिश्चित की जा सके। साथ ही नवीन तकनीकों के माध्यम से फाइटोसैनेटिक मापदंडों को पूरा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक भारतीय किसानों की पहुँच बढ़ाई जा सके। योजना के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में अनाज और अन्य फसलों (जैसे-प्याज, लहसुन आदि) के भण्डारण हेतु आधुनिक तकनीकी से युक्त भंडार गृहों के निर्माण कर इसे ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकेगा।
प्रदेश के किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में प्रतिवर्ष 6-6 हजार रूपये तो मिल ही रहे हैं। इसी कड़ी में प्रदेश के किसानों के लिये मुख्यमंत्री किसान-कल्याण सम्मान निधि योजना की शुरूआत कर किसानों को मध्यप्रदेश शासन की ओर से प्रतिवर्ष 4 हजार रूपये दो बराबर किश्तों में दिये जाना शुरू किया गया है। इस प्रकार किसानों को अब कुल 10 हजार रूपये प्रतिवर्ष किसान सम्मान निधि मिल रही है।
सिंचाई क्षमता में वृद्धि को प्राथमिकता
किसानों की आय को बढ़ाने के लिये बेहतर प्रबंधन और सिंचाई परियोजनाओं पर भी प्राथमिकता से कार्य करवाये जा रहे है। इन कार्यों से प्रदेश में अधिक से अधिक क्षेत्र में सिंचाई की उपलब्धता सुनिश्चित की गई। प्रदेश में अगले 5 वर्षों में 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।
अब डिजिटल कृषि भी
खेती में उत्पादकता बढ़ाने और उत्पादन लागत में कमी लाने के लिए मध्यप्रदेश में डिजिटल एग्रीकल्चर अंतर्गत लगातार काम किया जा रहा है। खेती को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) का इस्तेमाल करना ही डिजिटल कृषि कहलाता है। मध्यप्रदेश ने डिजिटल एग्रीकल्चर यानि फसलों की पैदावार बढ़ाने और खेती को सक्षम एवं लाभदायक बनाने के लिए आधुनिक तकनीक और सेवाओं का इस्तेमाल लगातार बढ़ाया है। यह कृषकों के लिए बेहद लाभदायक साबित हो रहा है।
बहरहाल कृषि क्षेत्र में बेहतर योजनाओं, रणनीति, प्रशिक्षण, संवाद और सहभागिता सुनिश्चित कर सरकार ने अन्नदाताओं के लिए स्वर्णिम संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। इसी का सुफल है कि हमारे किसान आत्म-निर्भर और अग्रणी बनकर आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश के लक्ष्य की प्राप्ति में महत्वपूर्ण सहयोगी बनने की ओर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।