कार्यशाला में उद्यमी आयुर्वेद विशेषज्ञों ने बताई चुनौतियों और नवाचारों से आगे बढ़ने की अभिनव बातें
आयुर्वेद और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी से जुड़े विद्वानों का मत है कि आयुर्वेद का स्वर्ण युग आरंभ हो चुका है और इसे आगे ले जाने के लिए जुनून और भीड़ से हटकर सोच होना चाहिये। आयुर्वेद एक ऐसा विज्ञान है, जिसमें आध्यात्म और विज्ञान दोनों का समावेश है। यह बात कोविड-19 महामारी के दौर में सिद्ध हो चुकी है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान पर केंद्रित एक रिसर्च पेपर चिकित्सा विज्ञान जगत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका ‘लेंसेट’ में प्रकाशित हो चुका है।
यह विचार रविवार को विज्ञान भवन में नेशनल आयुर्वेद स्टुडेंटस् एंड यूथ एसोसिएशन,विज्ञान भारती तथा मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में ‘आयुरप्रेन्युर’-‘कैसे आयुर्वेदिक क्लीनिक स्थापित करें’ विषय पर सम्पन्न कार्यशाला में आयुर्वेद चिकित्सा विशेषज्ञ और उद्यमियों ने व्यक्त किये। कार्यशाला का आयोजन स्वाधीनता के अमृत महोत्सव श्रृंखला के अंतर्गत किया गया था।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि विज्ञान भारती, नई दिल्ली के राष्ट्रीय महासचिव प्रवीण रामदास ने कहा कि आयुर्वेद के युवा चिकित्सकों को विशेषज्ञ उद्यमियों की अनुभव सम्पदा का लाभ उठाकर स्टार्ट-अप शुरू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आत्म-निर्भरता के बारे में भी सोचना चाहिये। श्री रामदास ने कहा कि भारत सरकार ने आयुर्वेद रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।
परिषद् के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने युवा आयुर्वेद चिकित्सकों से नये प्रयोग और नई प्रौद्योगिकी को अपनाने का आव्हान करते हुए कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान आयुर्वेद औषधियों का महत्व सामने आया है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में टेलीमेडिसिन एक नये क्षेत्र के रूप में उभरकर सामने आया है। एक अच्छा आयुर्वेद चिकित्सक बनने के लिए विख्यात आयुर्वेद वैद्यों की जीवनी और इस क्षेत्र के सफल उद्यमियों की सक्सेस स्टोरीज पढ़ें।
नेशनल आयुर्वेद स्टुडेंटस् एंड यूथ एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. प्रशांत तिवारी ने विद्यार्थियों से ‘नास्या’ के मंच के माध्यम से युवा वैद्यों से केरियर के सुनहरे अवसरों से परिचित होने और चुनौतियों का सामना करते हुए एक सफल वैद्य बनने का आव्हान किया।
उद्घाटन सत्र में विज्ञान भारती के शासी निकाय के सदस्य और प्रदूषण नियंत्रण मंडल के पूर्व चेयरमैन डॉ. एन.पी. शुक्ला ने भारतीय आयुर्वेद ज्ञान को सशक्त बताते हुए साइंटिफिक वेलीडेशन पर जोर दिया।
विशेषज्ञों ने सुनाई सक्सेस स्टोरीज और बताये सफलता के गुर
जीवा आयुर्वेद के निदेशक डॉ. प्रताप चौहान ने एक सफल आयुर्वेद चिकित्सक और उद्यमी बनने के गुर बताते हुए कहा कि नया या अभिनव विचार आदमी की भीड़ से अलग पहचान बनाता है। उन्होंने कहा कि पूरा विश्व इन दिनों परंपरागत चिकित्सा की ओर देख रहा है। आने वाले समय में मानसिक रोगी बढ़ेगें। इसका इलाज आयुर्वेद में है। उन्होंने कहा ‘लाइफ स्टाइल डिसऑर्डर’ एक बड़ा एरिया है, जिसमें आयुर्वेद अहम भूमिका निभा सकता है। डॉ. चौहान ने बताया कि आयुर्वेद हाइटेक हो चुका है और हमारी संस्था ने ग्रामीणों के लिए ‘टेलीडॉ.क-आयुर्वेद फॉर आल’ एप बनाया है। माधवबॉग के डॉ. रोहित साने ने आयुर्वेद और एन्टरप्रेन्योर से मिलाकर बने नये शब्द ‘आयुरप्रेन्युर’ की चर्चा करते हुए कहा कि ऐसा कुछ नया करना है, जिससे उद्यमिता दिखाई दे। उन्होंने कहा कि अपना क्लीनिक शुरू करना एन्टरप्रेन्योर है। उन्होंने बताया कि हमारा मिशन एक लाख आयुर्वेद डॉक्टरों का सशक्तिकरण कर भारत में मृत्यु दर घटाना चाहता है।
डॉ. रोहित साने ने कहा कि यह चिंतन का विषय है कि हजारों साल पुरानी आयुर्वेद चिकित्सा अभी भी फ्रंटलाइन थैरेपी नहीं बन पाई है।
तकनीकी सत्र में डॉ. प्रीति चोपड़ा और डॉ. अबरार मुलतानी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में युवा वैद्यों और विद्यार्थियों को उद्यमशील बनने के अभिनव टिप्स दिए। एक-दिवसीय कार्यशाला में आयुर्वेद कॉलेजों के 150 विद्यार्थियों ने भाग लिया।