कलश यात्रा के साथ श्रीमद्भागवत का शुभारंभ

गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ गंजबासौदा रमाकांत उपाध्याय/ 

पचमा रोड स्थित श्री हनुमान मंदिर गणगौर बाले बाग में पितृपक्ष में पितरों के मोक्ष प्राप्ति के लिए श्रीमद भागवत कथा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। विश्व धर्म संसद सांस्कृतिक प्रकोष्ठ की प्रांतीय सचिव डॉ अम्रता करुणेश्वरी के श्रीमुख से कथा का वाचन किया जाएगा। 


मंगलवार को कथा का शुभारंभ कलश यात्रा के साथ किया गया। कलश यात्रा में पचमा रोड श्रीबालाजी मंदिर के श्रीमहंत एवं और संत, डॉ अमृता करुणेश्वरी, भजन गायक कलाकार लखन शर्मा, काशी के आचार्य लालू शर्मा, ओम प्रकाश शर्मा, विशाल वैष्णव, मुख्य यजमान राम मोहन शर्मा,श्रद्धालुगण मौजूद थे।

इसके बाद डॉ अमृता करुणेश्वरी ने कथा का वाचन करते हुए कहा कि भागवत का साप्ताहिक प्रवचन पित्र मोक्ष की प्राप्ति हेतु होता है। उन्होंने गोकर्ण गोकर्ण और धुंधकारी धुंधकारी की कथा का चित्रण किया। जब जीवन सरल हो जावेगा तो आनंद प्राप्त होगा और आनंद प्राप्ति परमानंद प्राप्ति का मार्ग है, इसीलिए कथा में गोकर्ण के पिताजी का नाम आत्माराम था आत्ममंथन के द्वारा ही जीवन का सही मार्ग मिल जाता है। और हमें आनंद याने परमानंद के निकट पहुंचा देता है कथा व्यास ने भागवत कथा का महत्व समझाते हुए पद्म पुराण मैं वर्णित भागवत पुराण से भी कथा सुनाई। कथा व्यास में गंभीर एवं तत्वों को घर के काम से जोड़कर जीवन का वास्तविक महत्व समझाया।
उन्होंने चुगली एवं कपट का अंतर समझाते हुए जीवन में किस प्रकार कलह होती है इसका माता बहनों के दैनिक व्यवहार से उदाहरण देकर समझाया कि कपट और चुगली मनुष्य को अनेक प्रकार के कुपरिणाम देते हैं। उसका उदाहरण धुंधकारी है यदि धुंधकारी की माने कपट ना किया होता तो धुंधकारी जैसे दुर्गुणों वाला पुत्र नहीं प्राप्त आता है । माता बहनों को चाहिए कि बे कपट ना करें तथा सहज रहे और पति की आज्ञा का पालन करें यदि ऐसा होता तो वह फल उसने खा लिया होता और गोकर्ण जैसा विद्वान एवं धार्मिक पुत्र प्राप्त होता। कहने का तात्पर्य है कि प्रत्येक मनुष्य को संत एवं ऋषि-मुनियों के वचन का अक्षर से पालन करना चाहिए। ऐसा पंडित आत्माराम जी ने भी नहीं किया क्योंकि संत ने कहा था कि यह फल अपनी पत्नी को खिला देना किंतु आत्माराम जी ने फल देकर उसे खाने को कहा परिणाम स्वरूप उनकी पत्नी उनकी पत्नी धुंधली ने कपट रचना की परिणाम स्वरूप उसे उसके जीवन में दुख प्राप्त हुए यदि ऐसा ना होता तो उसका जीवन आनंद में होता तथा जीवन का सच्चा लक्ष्य जिसके लिए मनुष्य योनि प्राप्त हुई थी प्राप्त कर सकती मैं माता बहनों से यह अपेक्षा करती हूं कि श्रेष्ठ जनों की आज्ञा का अक्षर से पालन करें ताकि जीवन में सरसता एवं शांति प्राप्त हो कथा हमें ऐसे ही जीवन की प्राप्ति की ओर ले जाती है।
कथा के अंत मे प्रसाद वितरित किया गया।