Ganjbasoda भरत चरित्र से मिलती प्रेम और समर्पण की सीख: स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य

शुक्रवार सुबह 9 बजे से कथा होगी प्रारंभ

           जीवन में भाई का भाई के प्रति कैसा प्रेम और समर्पण सहोना चाहिए यदि यह देखना और सीख लेना है तो भारत जी का चरित्र जीवन में अपना लीजिए। रामायण में भरत का चरित्र दुनिया को यह संदेश देता है कि जिस भाई ने संपत्ति को त्याग कर सिर्फ भाई के लिए बिना कारण के ही वनवास भोगा और आज दुनिया में भाई-भाई संपत्ति के लिए एक दूसरे का गला काट रहे हैं। यदि हम भरत की तरह ना बन पाए लेकिन उनके चरित्र का कुछ अंश ही जीवन में अपना लें तो भाई का भाई कभी विद्रोह नहीं होगा बल्कि प्रेम और समर्पण बना रहेगा। कथा के दौरान अयोध्या धाम से पधारे जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी रत्नेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने नौलखी आश्रम पर विराट प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के उपलक्ष्य में चल रही संगीतमय श्रीमद् बाल्मीकि रामायण में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही ।

गुरुवार को बाल्मीकि रामायण में चित्रकूट में राम जी के भरत मिलाप के प्रसंग के जरिए श्रोताओं को भाई भाइयों में प्रेम और समर्पण संस्कार को पालन करने का संदेश दिया गया। शुक्रवार को कथा की पूर्णाहुति पर सुबह 9 बजे से कथा प्रारंभ होगी। भरत चरित्र को सुनाते हुए महाराजश्री ने कहा की परीक्षा से संघर्ष से व्यक्ति का जीवन और भी निखरता है। जिसकी जितनी कठिन परीक्षा होती है उसके जीवन में उतनी अधिक निखरता आती है। भरत चरित्र में भरत जी के चित्रकूट जाते समय उनकी चार परीक्षाएं हुई। कथा के आंठवे दिवस के प्रारंभ में सम्पूर्ण आयोजन के मुख्य यजमान राकेश मरखेडकर, नपा उपाध्यक्ष संदीप ठाकुर, समाजसेवी महेश अग्रवाल, घनश्याम अग्रवाल ने व्यास पीठ का पूजन किया। नवांकुर स्कूल के छात्र छात्राओं ने रामायण की मनमोहक प्रस्तुति दी। महाराज श्री ने कहा कि भरत जी अयोध्या से राजतिलक की संपूर्ण सामग्री राजमुकूट, सिंहासन, राजकीय आसन, वस्त्र, गुरु वशिष्ठ, माताओं सहित चित्रकूट के लिए गए। मार्ग में भरत जी की जब भेंट निषाद राज से हुई तब भरत जी ने यह कहकर निषाद राज को गले लगाया की जो स्वम प्रभु श्रीराम के मित्र हैं उनका स्थान तो सबसे ऊपर है। भरत चरित्र में व्यास पीठ से निषादराज की भी कथा सुनाई गई कथा में बताया की कैसे निषादराज प्रभु श्रीराम के लिए अपने प्राण तक की आहुति देने के लिए तैयार हो गए थे और भरत जी से युद्ध करने तैयार हो गए थे और उन्होंने अपने सैनिकों को यह निर्देश भी दिया था की प्रभु श्रीराम के लिए और गंगा के तट पर वीर गति मिले तो यह समझना की हमारा जीवन सफल हो गया। बाल्मिकी रामायण के आंठवे दिवस में श्री रत्नेश जी महाराज ने व्यास पीठ से स्वस्ति वाचन का संपूर्ण भावार्थ बताया गया साथ ही उन्होंने बताया की संगत के असर को भी विस्तार से समझाते हुए कहा की संगत का असर होता है इसलिए उत्तम संगत का होना आवश्यक है।

 

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