एक सभ्य समाज में आतंकवाद, विभाजन और नफरत की कोई जगह नहीं है : उपराष्ट्रपति
किसी भी धर्म या धार्मिक प्रतीक को कलंकित करना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है : उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने कहा कि दलों को विधायिकाओं में व्यवधान पर आत्मनिरीक्षण करना चाहिए
“अनुशासित और लोगों के लिए समर्पित रहें”: आकांक्षी नेताओं को उपराष्ट्रपति की सलाह
उपराष्ट्रपति ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप के छात्रों से बातचीत की
गंजबासौदा न्यूज़ पोर्टल @ नई दिल्ली रविकांत उपाध्याय / 8085883358
उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज मानवता की प्रगति के लिए विश्व शांति के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “एक सभ्य समाज में आतंकवाद, विभाजन और घृणा की कोई जगह नहीं है।”
श्री नायडू ने उप-राष्ट्रपति निवास में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेटिक लीडरशिप के छात्रों के साथ बातचीत की। उन्होंने इस बात को दोहराया कि भारतीयों को न केवल अपनी संस्कृति पर गर्व है, बल्कि सभी संस्कृतियों और धर्मों का भी सम्मान भी करते हैं। उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, “हम वसुधैव कुटुम्बकम् (पूरा विश्व एक परिवार है) में विश्वास करते हैं।”
उन्होंने कहा कि भारत, विश्व का सबसे अधिक धर्मनिरपेक्ष देश है और कोई भी व्यक्ति, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, इसके सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठ सकता है। उपराष्ट्रपति ने विविधता में एकता के महत्व पर जोर दिया और उन्होंने कहा, “साझा करना और देखभाल, भारतीय सभ्यता का मूल मूल्य है।”
श्री नायडू ने किसी भी धर्म या धार्मिक प्रतीक के अपमान करने को भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताया, जो बहुलतावाद और समावेशिता में विश्वास करती है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “किसी को किसी भी धर्म के खिलाफ अभद्र भाषा या अपमानजनक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। यह स्वीकार्य नहीं है।”
उपराष्ट्रपति ने छात्रों के विविध सवालों के जवाब दिए। इस दौरान श्री नायडु ने कहा कि विरोध एक लोकतांत्रिक अधिकार है, लेकिन हिंसक तरीकों का सहारा लेना राष्ट्र के हितों को नुकसान पहुंचाएगा।
उपराष्ट्रपति ने विधायिकाओं में व्यवधान पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आगे का रास्ता बाधा नहीं बल्कि “चर्चा, बहस व निर्णय” होना चाहिए और बाधित नहीं होना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, “दलों को आत्मनिरीक्षण (व्यवधानों पर) करना चाहिए कि वे लोकतंत्र को मजबूत कर रहे हैं या कमजोर कर रहे हैं।” उन्होंने मीडिया से विधायिकाओं में हंगामे को दिखाने से परहेज करने, लेकिन रचनात्मक बहस को प्रमुखता देने का अनुरोध किया।
उपराष्ट्रपति ने राजनीति सहित सभी क्षेत्रों में महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देने की पैरवी की।
उपराष्ट्रपति ने नेतृत्व में जरूरी गुणों के बारे में छात्रों को बताया। श्री नायडू कहा कि सार्वजनिक जीवन में व्यक्ति को अनुशासित और लोगों के लिए समर्पित होना चाहिए। उन्होंने कहा, “विचारधारा से अधिक महत्वपूर्ण आदर्श व्यवहार है।” इसके अलावा उन्होंने एक अच्छा नेता बनने के लिए टीम वर्क, अच्छे संचार कौशल और लोगों के साथ लगातार संवाद के महत्व पर भी जोर दिया।